Monday, 11 November 2013

कुछ बिखरी पंखुड़ियां.....!!! भाग-5

                 31.                                            
मेरी कविता में तुम हो,
या मेरी कविता ही तुम हो.....
कुछ नही सिर्फ शब्दों का फेर है.....
मेरे शब्द-शब्द ही तुम हो.....!!!
                   32.
तुम्हे अपने एहसासों में पिरोना चाहती हूँ,
तुम्हे ही शब्दों में बांधना चाहती हूँ....
फिर बार  इक टूट कर,
तुममे ही बिखर जाना चाहती हूँ......!!!
                   33.
ना जाने कैसे लोग हकीकत को भुला देते है,
मुझसे तो अब ख्वाब भी भुलाए नही जाते....!!!
                  34.
लोग कहते है कि.........
मैं तुम्हे अभी तक भुला नही पायी.........
पर उन्हें क्या पता.............
मैंने तुम्हे कभी भूलना चाहा ही नही.....!!!
                  35.
मैं कैसे मिटा दूँ .......
निशानियां तेरे प्यार की....-
जब इक-इक याद बन जाती है,
कहानियाँ तेरे प्यार की........!!!
                 36.
हर सांस के साथ तुम्हे महसूस करती हूँ,
तुम्हे भूल गयी हूँ ये सच है कि.. 
ये झूठ मैं हर बार बोलती हूँ.....!!!
                  37.
हम एक दुसरे से अलग होकर,
अपनी जिन्दगी ढूंढ़ते रहे...
इक लम्बा सफ़र तन्हा तय करने के बाद,
हमें पता चला कि.....
हमारी जिन्दगी तो एक दुसरे के साथ थी....!!!
                  38.
बेशक तुम पर ही लिखी मेरी हर कविता होती है,
फिर भी तुम्हे जान कर हैरानी होगी कि...
वो तुम्हारे लिए नही होती है......!!!
                  39.
कुछ शब्द  समेटे है मैंने तुम्हारे लिये,
तुम कहो तो बिखेर दूँ इन्हें पन्नो पर.....!!!
                 40.
मैं तुम में ही कही जी रही हूँ,
ना समझना मुझे खुद से दूर धड़कन बन कर...
तुम्हारे दिल में ही धड़क रही हूँ मैं.......!!! 
   



13 comments:

  1. दिल की हर धड़कन का हिसाब दे दिया है आपने अपनी इस श्रंखला में ......
    बहुत खुबसूरत .....
    स्वस्थ रहें!

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  2. तुम्हे भूल गयी हूँ ये सच है कि..
    ये झूठ मैं हर बार बोलती हूँ
    खूबसूरत पंक्तियाँ

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  3. इसे कहते है .. रिश्तों को कवितामयी बनाना.. कविता को रिश्ते के रूप में पिरोने का इतिहास बहुत पुराना है .मान -बेटे के बीच कि कविता ..इत्यादि
    बहुत खूब सुषमा जी मेरे भी ब्लॉग पर आये

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  4. mai aapke shabdo pe mar mita hu..waakai aap bahut mast likhti ho

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  5. वाह क्या बात है । एक गाथा है भूला देने कि |

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  6. ये झूठ मैं हर बार बोलती हूँ
    खूबसूरत पंक्तियाँ

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  7. प्रेम के हर लहमे को इन एहसासों में उतारा है ...
    लाजवाब ...

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  8. कुछ बिखरी पंखुडियाँ ...के अभी तक के पाँचों भाग बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति लिए हुए हैं ....बहुत खूब

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  9. बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण रचना । बधाई । सस्नेह

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  10. सब कुछ खुद से मांग लिया तुझको माँगके ...उठते नहीं हैं हाथ मेरे इस दुआ के बाद.....!

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  11. ना जाने कैसे लोग हकीकत को भुला देते है,
    मुझसे तो अब ख्वाब भी भुलाए नही जाते


    मैंने तुम्हे कभी भूलना चाहा ही नही.....!!



    बेशक तुम पर ही लिखी मेरी हर कविता होती है,
    फिर भी तुम्हे जान कर हैरानी होगी कि...
    वो तुम्हारे लिए नही होती है......



    hmmmmmmmmmmmmmmmmmm

    aaj...raat..shayd..aapkaa..hi blog pdhugii....hmm..is disembr ki thithuran me..aapke blog ko prnaaa...achaa lg rhaa he....

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