41.
हज़ारो बहाने है तुम्हारे पास...
मुझको भूल जाने के लिये,
मेरे पास सिर्फ एक वजह है....!
तुम्हे याद करने के लिए.....
42.
मैं नाराज इसलिए नही हूँ....कि
तुम मेरे साथ नही चल सके,
मैं नाराज इसलिए हूँ कि...
मैं तुम्हारे बिना क्यों नही चल सकी....!
43.
मैं एक बार फिर उसी राह,
उसी डगर जा रही हूँ...
तुम मिले थे जहाँ तय करने मैं वही सफ़र जा रही हूँ...
यकीन है कि तुम फिर मेरा हाथ थाम लोगे रोक,
लोगे मुझे यूँ तन्हा ना जाने दोगे......!
44.
कभी कभी अपनों की भीड़ भी,
बहुत बेचैन कर देती है....और
किसी बहुत अपने की याद दिल जाती है....!
45.
इक सुकून की तलाश में तुम तक पहुची थी,
तुमसे मिलकर और भी बेचैन हो गयी.....!
46.
जब कभी अँधेरा घेरता है मुझे.....
तुम्हारी बाहों के घेरे याद आते है,
जब कभी ख़ामोशी घेरती है मुझे....
तुम्हारे सीने पर सर रख कर सुनी थी कभी,
वो धड़कने सुनायी देती है........
मैं कहाँ अकेली चलती हूँ.....इन राहो पर
मेरे साथ चलती......तुम्हारी परछाई दिखायी देती है......!
47.
सब कुछ पा लिया हमने...अब कोई ख्वाइश ना रही,
फिर भी खाली ही रहा...
मन का कोना कोई.......
बहुत लोग आये भरने वो जगह,
फिर भी.... तुम्हारे जाने के बाद वो जगह खाली ही रही....!
48.
बहुत मुश्किल से बांध कर रखा है,
खुद को बिखरने से....
कोशिश तो तुमने भी बहुत कि थी......!
49.
तेज धुप में तुमको जो छाँव दे,
वो आँचल बन जाउंगी मैं...
तुम पर जो प्यार बन कर जो बरसे,
वो बादल बन जाउंगी मैं.....
तुम्हारे एहसासो को जो वयक्त करे,
वो शब्द बन जाउंगी मैं....
तुम जिसे गुनगुनाओगे.
वो ग़ज़ल बन जाउंगी मैं....!
50.
हर बार यूँ ही मुस्करा कर मिली हूँ तुमसे,
डर था कही तुम चेहरे पर...
उदासी ना पढ़ लो...!
हज़ारो बहाने है तुम्हारे पास...
मुझको भूल जाने के लिये,
मेरे पास सिर्फ एक वजह है....!
तुम्हे याद करने के लिए.....
42.
मैं नाराज इसलिए नही हूँ....कि
तुम मेरे साथ नही चल सके,
मैं नाराज इसलिए हूँ कि...

43.
मैं एक बार फिर उसी राह,
उसी डगर जा रही हूँ...
तुम मिले थे जहाँ तय करने मैं वही सफ़र जा रही हूँ...
यकीन है कि तुम फिर मेरा हाथ थाम लोगे रोक,
लोगे मुझे यूँ तन्हा ना जाने दोगे......!
44.
कभी कभी अपनों की भीड़ भी,
बहुत बेचैन कर देती है....और
किसी बहुत अपने की याद दिल जाती है....!
45.
इक सुकून की तलाश में तुम तक पहुची थी,
तुमसे मिलकर और भी बेचैन हो गयी.....!
46.
जब कभी अँधेरा घेरता है मुझे.....
तुम्हारी बाहों के घेरे याद आते है,
जब कभी ख़ामोशी घेरती है मुझे....
तुम्हारे सीने पर सर रख कर सुनी थी कभी,
वो धड़कने सुनायी देती है........
मैं कहाँ अकेली चलती हूँ.....इन राहो पर
मेरे साथ चलती......तुम्हारी परछाई दिखायी देती है......!
47.
सब कुछ पा लिया हमने...अब कोई ख्वाइश ना रही,
फिर भी खाली ही रहा...
मन का कोना कोई.......
बहुत लोग आये भरने वो जगह,
फिर भी.... तुम्हारे जाने के बाद वो जगह खाली ही रही....!
48.
बहुत मुश्किल से बांध कर रखा है,
खुद को बिखरने से....
कोशिश तो तुमने भी बहुत कि थी......!
49.
तेज धुप में तुमको जो छाँव दे,
वो आँचल बन जाउंगी मैं...
तुम पर जो प्यार बन कर जो बरसे,
वो बादल बन जाउंगी मैं.....
तुम्हारे एहसासो को जो वयक्त करे,
वो शब्द बन जाउंगी मैं....
तुम जिसे गुनगुनाओगे.
वो ग़ज़ल बन जाउंगी मैं....!
50.
हर बार यूँ ही मुस्करा कर मिली हूँ तुमसे,
डर था कही तुम चेहरे पर...
उदासी ना पढ़ लो...!
बढ़िया प्रस्तुति-
ReplyDeleteआभार आदरणीया-
मैं नाराज इसलिए हूँ कि...
ReplyDeleteमैं तुम्हारे बिना क्यों नही चल सकी.
.... वाह .... बेहतरीन भाव
हेर एक के.. बीते पल का एहसास दिलाती
ReplyDeleteये कोमल ,नाज़ुक आपकी बिखरी पंखुड़ियां......
शुभकामनायें!
बहुत बढ़िया.....!!!
ReplyDeleteप्रेममय भावों की अभिव्यक्ति !!
उनके देखे से जो आ जाती है मुंह पर रौनक...
ReplyDeleteवो समझते हैं बीमार का हाल अच्छा है...
बहुत खूब..
ReplyDeleteसभी लाजवाब...
और दिल के करीब....
:-)
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार को (24-11-2013) बुझ ना जाए आशाओं की डिभरी ........चर्चामंच के 1440 अंक में "मयंक का कोना" पर भी होगी!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हर लम्हा जैसे जी रहा हो प्रेम में ...
ReplyDeleteबहुत उम्दा ...
बेहद खूबसूरत पंखुड़ियों का गुलदस्ता ..
ReplyDeleteपंखुड़ियों का सुन्दर गुलदस्ता ..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर पंक्तियाँ..
ReplyDeleteमैं नाराज इसलिए नही हूँ....कि
ReplyDeleteतुम मेरे साथ नही चल सके,
मैं नाराज इसलिए हूँ कि...
मैं तुम्हारे बिना क्यों नही चल सकी....!
वाह बहुत ही सुन्दर |
ReplyDeleteबहुत मुश्किल से बांध कर रखा है,
खुद को बिखरने से....
कोशिश तो तुमने भी बहुत कि थी......!
...वाह !!!
ह्रदयस्पर्शी.. आभार
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत पंखुड़ियों का गुलदस्ता ..
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