आज मैंने खुद को जाने से बहुत रोका,
कितनी कसमे दी वादे दिए,
जिंदगी का वास्ता भी दिया.....
पर मैं फिर भी खुद को रोक न सकी,
ना जाने क्यों....
आज खुद को छोड़ देना चाहती थी....!
हर कसम तोड़ कर,
खुद को छोड़ कर जाना चाहती थी,
आज मैंने खुद ना जाने से बहुत रोका....!
कितनी बार...
हाथ थाम कर बिठाया खुद को,
कितनी बार....
अपने जज़बातो को समझाया खुद को....
सारी दुनिया से जीत कर,
आज मैं खुद से हार गयी हूँ.......!
कि अब खुद ही खुद से जिद कर रही थी,
अब मैं खुद के साथ....और
धोखे में रह नही सकती.....
झूठ को अब और सच मान नही सकती....
मैंने खुद से कहा अब...
मुझे तुम्हे छोड़ कर जाना होगा...
मैं हार गयी हूँ....
तुम्हारी ये दलीले सुन कर...
मैं तुम्हारे इन भावो में बह कर,
खुद को खोती जा रही हूँ......
मैं जा रही हूँ.....खुद कि तलाश में...!
जिसे तुम न जाने कहाँ छोड़ आयी हो....
अपने एहसासो को दबा कर,
तुम पत्थर बन सकती हो.....
मैं नही...... अब मैं तुम्हारा और साथ नही दे सकती,
और दर्द नही सह सकती.....
तुम जीयो अपने झूठे भ्रम के साथ....
मैं जा रही हूँ......इक वादा तुमसे करती हूँ,
जब इस भ्रम कि दिवार टूटेगी...
तुम सच को जानोगी तो,
मैं खुद तुम्हे मिल जाउंगी......
अलविदा.....!!!
आज मैंने खुद को जाने से बहुत रोका.......!!!
कितनी कसमे दी वादे दिए,
जिंदगी का वास्ता भी दिया.....
पर मैं फिर भी खुद को रोक न सकी,
ना जाने क्यों....
आज खुद को छोड़ देना चाहती थी....!
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खुद को छोड़ कर जाना चाहती थी,
आज मैंने खुद ना जाने से बहुत रोका....!
कितनी बार...
हाथ थाम कर बिठाया खुद को,
कितनी बार....
अपने जज़बातो को समझाया खुद को....
सारी दुनिया से जीत कर,
आज मैं खुद से हार गयी हूँ.......!
कि अब खुद ही खुद से जिद कर रही थी,
अब मैं खुद के साथ....और
धोखे में रह नही सकती.....
झूठ को अब और सच मान नही सकती....
मैंने खुद से कहा अब...
मुझे तुम्हे छोड़ कर जाना होगा...
मैं हार गयी हूँ....
तुम्हारी ये दलीले सुन कर...
मैं तुम्हारे इन भावो में बह कर,
खुद को खोती जा रही हूँ......
मैं जा रही हूँ.....खुद कि तलाश में...!
जिसे तुम न जाने कहाँ छोड़ आयी हो....
अपने एहसासो को दबा कर,
तुम पत्थर बन सकती हो.....
मैं नही...... अब मैं तुम्हारा और साथ नही दे सकती,
और दर्द नही सह सकती.....
तुम जीयो अपने झूठे भ्रम के साथ....
मैं जा रही हूँ......इक वादा तुमसे करती हूँ,
जब इस भ्रम कि दिवार टूटेगी...
तुम सच को जानोगी तो,
मैं खुद तुम्हे मिल जाउंगी......
अलविदा.....!!!
आज मैंने खुद को जाने से बहुत रोका.......!!!
आखिर उसने अपनी अंतरात्मा की आवाज सुन ही ली ...... सुंदर भावों की अभिव्यक्ति ......!!
ReplyDeleteखुद से कोई कैसे भाग सकता है...खुद में छुपे हैं राज सारे...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर पंक्तियाँ,ह्रदयस्पर्शी.आभार
ReplyDeleteबढ़िया है -
ReplyDeleteआभार आपका-
बहुत बढ़िया.....
ReplyDeleteगहन अभिव्यक्ति....
अनु
क्या बात है गजब की कहानी
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शुक्रवार (29-11-2013) को स्वयं को ही उपहार बना लें (चर्चा -1446) पर भी है!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Antarman kholkar rakh diya hai is kavita mein!!
ReplyDeleteवाह ... बेहतरीन
ReplyDeleteबढियां है ..
ReplyDeleteवाह ..बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteवाह बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteमैं नही...... अब मैं तुम्हारा और साथ नही दे सकती,
ReplyDeleteऔर दर्द नही सह सकती.....
तुम जीयो अपने झूठे भ्रम के साथ....
मैं जा रही हूँ......इक वादा तुमसे करती हूँ,
जब इस भ्रम कि दिवार टूटेगी...
तुम सच को जानोगी तो,
gahri soch
rachana
मैं जा रही हूँ.....खुद कि तलाश में...!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव....खुद को तलाशना बहुत जरूरी लेकिन सबसे कठिन काम है...अच्छी रचना के लिए बधाई .....
गहन अभिव्यक्ति ..
ReplyDeleteप्रशंसनीय रचना - बधाई
ReplyDeleteलम्बे अंतराल के बाद शब्दों की मुस्कुराहट पर ....बहुत परेशान है मेरी कविता
आप की रचना ने वाकया कायल कर दिया
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