Wednesday 27 November 2013

आज मैंने खुद को जाने से बहुत रोका.....!!!

आज मैंने खुद को जाने से बहुत रोका,                 
कितनी कसमे दी वादे दिए,
जिंदगी का वास्ता भी दिया..... 
पर मैं फिर भी खुद को रोक न सकी,
ना जाने क्यों....
आज खुद को छोड़ देना चाहती थी....!
हर कसम तोड़ कर,
खुद को छोड़ कर जाना चाहती थी, 
आज मैंने खुद ना जाने से बहुत रोका....!
कितनी बार...
हाथ थाम कर बिठाया खुद को, 
कितनी बार....
अपने जज़बातो को समझाया खुद को.... 
सारी दुनिया से जीत कर,
आज मैं खुद से हार गयी हूँ.......!
कि अब खुद ही खुद से जिद कर रही थी, 
अब मैं खुद के साथ....और 
धोखे में रह नही सकती..... 
झूठ को अब और सच मान नही सकती.... 
मैंने खुद से कहा अब...
मुझे तुम्हे छोड़ कर जाना होगा...
मैं हार गयी हूँ....
तुम्हारी ये दलीले सुन कर... 
मैं तुम्हारे इन भावो में बह कर,
खुद को खोती जा रही हूँ......
मैं जा रही हूँ.....खुद कि तलाश में...!
जिसे तुम न जाने कहाँ छोड़ आयी हो.... 
अपने एहसासो को दबा कर,
तुम पत्थर बन सकती हो.....
मैं नही...... अब मैं तुम्हारा और साथ नही दे सकती,
और दर्द नही सह सकती.....
तुम जीयो अपने झूठे भ्रम के साथ....
मैं जा रही हूँ......इक वादा तुमसे करती हूँ,
जब इस भ्रम कि दिवार टूटेगी...
तुम सच को जानोगी तो,
मैं खुद तुम्हे मिल जाउंगी......
अलविदा.....!!! 
आज मैंने खुद को जाने से बहुत रोका.......!!!

17 comments:

  1. आखिर उसने अपनी अंतरात्मा की आवाज सुन ही ली ...... सुंदर भावों की अभिव्यक्ति ......!!

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  2. खुद से कोई कैसे भाग सकता है...खुद में छुपे हैं राज सारे...

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  3. बहुत सुन्दर पंक्तियाँ,ह्रदयस्पर्शी.आभार

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  4. बढ़िया है -
    आभार आपका-

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  5. बहुत बढ़िया.....
    गहन अभिव्यक्ति....

    अनु

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  6. क्या बात है गजब की कहानी

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  7. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शुक्रवार (29-11-2013) को स्वयं को ही उपहार बना लें (चर्चा -1446) पर भी है!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  8. वाह ... बेहतरीन

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  9. वाह ..बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!

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  10. वाह बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!

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  11. मैं नही...... अब मैं तुम्हारा और साथ नही दे सकती,
    और दर्द नही सह सकती.....
    तुम जीयो अपने झूठे भ्रम के साथ....
    मैं जा रही हूँ......इक वादा तुमसे करती हूँ,
    जब इस भ्रम कि दिवार टूटेगी...
    तुम सच को जानोगी तो,
    gahri soch
    rachana

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  12. मैं जा रही हूँ.....खुद कि तलाश में...!

    बहुत सुन्दर भाव....खुद को तलाशना बहुत जरूरी लेकिन सबसे कठिन काम है...अच्छी रचना के लिए बधाई .....

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  13. गहन अभिव्यक्ति ..

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  14. प्रशंसनीय रचना - बधाई
    लम्बे अंतराल के बाद शब्दों की मुस्कुराहट पर ....बहुत परेशान है मेरी कविता

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  15. आप की रचना ने वाकया कायल कर दिया

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