अपनी हदों से गुजर रही हूँ मैं,
खुद से लड़ने की जिद कर रही मैं...
जाने की रौशनी की तलाश में,
गहरे अंधेरो में उतर रही हूँ मैं....
अभी पार समंदर कर रही हूँ मैं,
लहरों से उलझ रही हूँ मैं.....
खुद को खो देने के जूनून में,
समंदर की गहराइयों में उतर रही हूँ मैं....
अभी आकाश को खुद में समेट रही हूँ मैं,
चाँद तारो से लड़ रही हूँ मैं.....
किसी को चाँद देने के जूनून में,
मैं हर हद से गुजर रही हूँ मैं.......
अभी शब्दों को गढ़ रही हूँ मैं....
किसी की ख़ामोशी पढने के जूनून में,
मैं छुपे एहसासों को शब्दों में रच रही हूँ मैं........
खुद से लड़ने की जिद कर रही मैं...
जाने की रौशनी की तलाश में,
गहरे अंधेरो में उतर रही हूँ मैं....

लहरों से उलझ रही हूँ मैं.....
खुद को खो देने के जूनून में,
समंदर की गहराइयों में उतर रही हूँ मैं....
अभी आकाश को खुद में समेट रही हूँ मैं,
चाँद तारो से लड़ रही हूँ मैं.....
किसी को चाँद देने के जूनून में,
मैं हर हद से गुजर रही हूँ मैं.......
अभी शब्दों को गढ़ रही हूँ मैं....
किसी की ख़ामोशी पढने के जूनून में,
मैं छुपे एहसासों को शब्दों में रच रही हूँ मैं........
wow nice line
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - बुधवार - 2/10/2013 को
ReplyDeleteजो जनता के लिए लिखेगा, वही इतिहास में बना रहेगा- हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः28 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर .... Darshan jangra
अभी शब्दों को गढ़ रही हूँ मैं....
ReplyDeleteकिसी की ख़ामोशी पढने के जूनून में,
मैं छुपे एहसासों को शब्दों में रच रही हूँ मैं........
बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार (02-10-2013) नमो नमो का मन्त्र, जपें क्यूंकि बरबंडे - -चर्चा मंच 1386 में "मयंक का कोना" पर भी है!
महात्मा गांधी और पं. लाल बहादुर शास्त्री को श्रद्धापूर्वक नमन।
दो अक्टूबर की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर पंक्तिया !
ReplyDeleteनवीनतम पोस्ट मिट्टी का खिलौना !
नई पोस्ट साधू या शैतान
यह शब्द चित्र बन जायेंगे ...
ReplyDeletewaah bahut sundar rachna
ReplyDeleteसुन्दर पंक्तियाँ
ReplyDeleteअभी शब्दों को गढ़ रही हूँ मैं....
ReplyDeleteकिसी की ख़ामोशी पढने के जूनून में,
मैं छुपे एहसासों को शब्दों में रच रही हूँ मैं....
बहुत खूब ... किसी की खामोशी पढ़ना आसान तो नहीं होता ... फिर उनको शब्द देना तो और भी मुश्किल ...
कल 03/10/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद!
बस हद से गुजर जाना हैं |
ReplyDeleteइश्क ,मुहब्बत ,प्रेम ,बेहद बेपनाह खुशी हैं ,किसी से भी करो ,कहीं भी...........शर्त एक हैं -न चाह,न आरजू,न मांग हों गरज की -इश्क हों खालिश |
“महात्मा गाँधी :एक महान विचारक !”
सुन्दर अभिव्यक्ति सुषमा जी। टंकण में कुछ त्रुटियाँ रह गयी हैं (शायद गूगल literation के कारण), उसे सही कर लें तो पढने में और भी आनंद आएगा।
ReplyDeleteसादर
मधुरेश
अपनी हदों से गुजर रही हूँ मैं,
ReplyDeleteखुद से लड़ने की जिद कर रही मैं...
जाने की रौशनी की तलाश में,
गहरे अंधेरो में उतर रही हूँ मैं....
दिल को छु रहा है हेर शब्द सुषमा जी
vibrating feelings with emotions
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना....
ReplyDeleteआपको यह बताते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी यह रचना आज हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल(http://hindibloggerscaupala.blogspot.in/) की बुधवारीय चर्चा में शामिल की गयी है। कृपया पधारें और अपने विचारों से हमें भी अवगत करायें।
ReplyDeleteमैं छुपे एहसासों को शब्दों में रच रही हूँ मैं.......बहुत सुन्दर
ReplyDeleteमैं हर हद से गुजर रही हूँ मैं.......
ReplyDeleteअभी शब्दों को गढ़ रही हूँ मैं....
किसी की ख़ामोशी पढने के जूनून में,
मैं छुपे एहसासों को शब्दों में रच रही हूँ मैं...
man ke premras ke dard mein doobi bhaavnaon ka chitran shabdon mein sunder dhang se kiya hai.
shubhkamnayen