मैं टूटना नही चाहती थी......
मैं गिर कर सम्हालना चाहती थी..
चाहे जैसी हो चलना चाहती थी
सिर्फ मैं टूटना नही चाहती थी....
मैं रिश्तों मे बंधना चाहती थी...
मैं बिखर कर सिमटना चाहती थी....
सिर्फ मैं टूटना नही चाहती थी....
मैं लड़ना चाहती थी...
जीतना चाहती थी...
हारना चाहती थी....
सिर्फ मैं टूटना नही चाहती थी....
मैं एहसासों छुना चाहती थी....
सपनो को जीना चाहती थी...
सिर्फ मैं टूटना नही चाहती थी....
मैं शब्दों को गढ़ना चाहती थी....
लम्हों को पिरोना चाहती थी....
बन कर हवा तुम्हे छु कर गुजरना चाहती थी....
तुम्हारे साथ मैं हद से गुजरना चाहती थी.....
सिर्फ मैं टूटना नही चाहती थी....!!!
मैं शब्दों को गढ़ना चाहती थी....
ReplyDeleteलम्हों को पिरोना चाहती थी....
बन कर हवा तुम्हे छु कर गुजरना चाहती थी....
तुम्हारे साथ मैं हद से गुजरना चाहती थी.....
सिर्फ मैं टूटना नही चाहती थी..
बहुत छोटी सी प्यार भरी गुजारिश .... जब प्रेम में हद से गुजरने की तैयारी है तो तूने से डर कैसा ..
जहां चाह वहाँ राह .... सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteटूटना न चाहना ही काफी नहीं था
ReplyDeleteजुड़े रहने का शऊर सीख लेना था...
भाव भरी सुंदर प्रस्तुति..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव !
latest post"मेरे विचार मेरी अनुभूति " ब्लॉग की वर्षगांठ
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कब यहाँ किसने टूटना चाहा है.......वक़्त के थपेड़े हर शै से गुज़रते है......टूटकर कर फिर जुड़ते है ।
ReplyDeleteमैं शब्दों को गढ़ना चाहती थी....
ReplyDeleteलम्हों को पिरोना चाहती थी....
बन कर हवा तुम्हे छु कर गुजरना चाहती थी....नाजुक एहसास
वाह बहुत खूब .
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति,आभार.
ReplyDeleteआप सब के लिए..."महिलाओं के स्वास्थ्य सम्बन्धी सम्पूर्ण जानकारी
ReplyDelete"
कौन चाहता है टूटना....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना...
अनु
ReplyDeleteमैं एहसासों छुना चाहती थी....
सपनो को जीना चाहती थी...
सिर्फ मैं टूटना नही चाहती थी...--
प्रेम की गहन अनुभूति
सुंदर रचना
बधाई
आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों
मैं शब्दों को गढ़ना चाहती थी....
ReplyDeleteलम्हों को पिरोना चाहती थी....
वाह !!!बहुत बेहतरीन रचना,आभार,
RECENT POST : क्यूँ चुप हो कुछ बोलो श्वेता.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार (17-04-2013) के "साहित्य दर्पण " (चर्चा मंच-1210) पर भी होगी! आपके अनमोल विचार दीजिये , मंच पर आपकी प्रतीक्षा है .
सूचनार्थ...सादर!
मैं टूटना नही चाहती थी......
ReplyDeleteमैं गिर कर सम्हालना चाहती थी..
चाहे जैसी हो चलना चाहती थी
सिर्फ मैं टूटना नही चाहती थी....
यही जज्बा होना ज़रूरी है सबके लिए.
सुन्दर सटीक भावपूर्ण रचना | आभर
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
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tootna koi bhi nahi chahata par aksar anchaha hi hota hai........bahut sundar mam
ReplyDeleteHmmm... Touched!
ReplyDeleteबन कर हवा तुम्हे छु कर गुजरना चाहती थी....
ReplyDeleteतुम्हारे साथ मैं हद से गुजरना चाहती थी.....
सिर्फ मैं टूटना नही चाहती थी....!!!
टूट कर जुड़ना कितना मुश्किल होता है
भावपूर्ण सुन्दर रचना !
बन कर हवा तुम्हे छु कर गुजरना चाहती थी....
ReplyDeleteतुम्हारे साथ मैं हद से गुजरना चाहती थी.....
अत्यंत सारगर्भित बधाई
ReplyDeleteमैं शब्दों को गढ़ना चाहती थी....
लम्हों को पिरोना चाहती थी....
बन कर हवा तुम्हे छु कर गुजरना चाहती थी....
तुम्हारे साथ मैं हद से गुजरना चाहती थी.....
सिर्फ मैं टूटना नही चाहती थी....!!!
बहुत ही भावपूर्ण सुन्दर कविता |
तुम्हारे साथ मैं हद से गुजरना चाहती थी.....
ReplyDeleteसिर्फ मैं टूटना नही चाहती थी....!!!
बहुत सुन्दर प्रेममयी रचना ।।
ReplyDeleteसुन्दर. टूटना तो अंत है
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteसादर
भाव पूर्ण रचना ..बधाई
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति..
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
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