Tuesday, 16 April 2013

मैं टूटना नही चाहती थी......!!!


मैं टूटना नही चाहती थी......                                                
मैं गिर कर सम्हालना चाहती थी..
चाहे जैसी हो चलना चाहती थी
सिर्फ मैं टूटना नही चाहती थी....

मैं रिश्तों मे बंधना चाहती थी...
मैं बिखर कर सिमटना चाहती थी....
सिर्फ मैं टूटना नही चाहती थी....

मैं  लड़ना चाहती थी...
जीतना चाहती थी...
हारना चाहती थी....
सिर्फ मैं टूटना नही चाहती थी....

मैं  एहसासों  छुना चाहती थी....
सपनो को जीना चाहती थी...
सिर्फ मैं टूटना नही चाहती थी....

मैं शब्दों को गढ़ना चाहती थी....
लम्हों को पिरोना चाहती थी....
बन कर हवा तुम्हे छु कर गुजरना चाहती थी....
तुम्हारे साथ मैं हद से गुजरना चाहती थी.....
सिर्फ मैं टूटना नही चाहती थी....!!!



27 comments:

  1. मैं शब्दों को गढ़ना चाहती थी....
    लम्हों को पिरोना चाहती थी....
    बन कर हवा तुम्हे छु कर गुजरना चाहती थी....
    तुम्हारे साथ मैं हद से गुजरना चाहती थी.....
    सिर्फ मैं टूटना नही चाहती थी..

    बहुत छोटी सी प्यार भरी गुजारिश .... जब प्रेम में हद से गुजरने की तैयारी है तो तूने से डर कैसा ..

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  2. जहां चाह वहाँ राह .... सुंदर अभिव्यक्ति

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  3. टूटना न चाहना ही काफी नहीं था
    जुड़े रहने का शऊर सीख लेना था...

    भाव भरी सुंदर प्रस्तुति..

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  4. कब यहाँ किसने टूटना चाहा है.......वक़्त के थपेड़े हर शै से गुज़रते है......टूटकर कर फिर जुड़ते है ।

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  5. मैं शब्दों को गढ़ना चाहती थी....
    लम्हों को पिरोना चाहती थी....
    बन कर हवा तुम्हे छु कर गुजरना चाहती थी....नाजुक एहसास

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  6. वाह बहुत खूब .

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  7. बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति,आभार.

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  8. कौन चाहता है टूटना....
    बहुत सुन्दर रचना...
    अनु

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  9. मैं एहसासों छुना चाहती थी....
    सपनो को जीना चाहती थी...
    सिर्फ मैं टूटना नही चाहती थी...--
    प्रेम की गहन अनुभूति
    सुंदर रचना
    बधाई

    आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों

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  10. मैं शब्दों को गढ़ना चाहती थी....
    लम्हों को पिरोना चाहती थी....

    वाह !!!बहुत बेहतरीन रचना,आभार,
    RECENT POST : क्यूँ चुप हो कुछ बोलो श्वेता.

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  11. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार (17-04-2013) के "साहित्य दर्पण " (चर्चा मंच-1210) पर भी होगी! आपके अनमोल विचार दीजिये , मंच पर आपकी प्रतीक्षा है .
    सूचनार्थ...सादर!

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  12. मैं टूटना नही चाहती थी......
    मैं गिर कर सम्हालना चाहती थी..
    चाहे जैसी हो चलना चाहती थी
    सिर्फ मैं टूटना नही चाहती थी....


    यही जज्बा होना ज़रूरी है सबके लिए.

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  13. सुन्दर सटीक भावपूर्ण रचना | आभर

    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

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  14. tootna koi bhi nahi chahata par aksar anchaha hi hota hai........bahut sundar mam

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  15. बन कर हवा तुम्हे छु कर गुजरना चाहती थी....
    तुम्हारे साथ मैं हद से गुजरना चाहती थी.....
    सिर्फ मैं टूटना नही चाहती थी....!!!

    टूट कर जुड़ना कितना मुश्किल होता है
    भावपूर्ण सुन्दर रचना !

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  16. बन कर हवा तुम्हे छु कर गुजरना चाहती थी....
    तुम्हारे साथ मैं हद से गुजरना चाहती थी.....

    अत्यंत सारगर्भित बधाई

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  17. मैं शब्दों को गढ़ना चाहती थी....
    लम्हों को पिरोना चाहती थी....
    बन कर हवा तुम्हे छु कर गुजरना चाहती थी....
    तुम्हारे साथ मैं हद से गुजरना चाहती थी.....
    सिर्फ मैं टूटना नही चाहती थी....!!!
    बहुत ही भावपूर्ण सुन्दर कविता |

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  18. तुम्हारे साथ मैं हद से गुजरना चाहती थी.....
    सिर्फ मैं टूटना नही चाहती थी....!!!

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  19. बहुत सुन्दर प्रेममयी रचना ।।

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  20. सुन्दर. टूटना तो अंत है

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  21. बहुत ही बढ़िया


    सादर

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  22. भाव पूर्ण रचना ..बधाई

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  23. सुंदर प्रस्तुति..

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  24. सुन्दर प्रस्तुति

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