आज मुझसे यूँ ही एक दोस्त पूछ बैठी की मैंने कुछ क्यों नही लिखा? दिल्ली
वाली घटना पर मैं उसके इस सवाल पर मेरे पास कोई जवाब नही था और....मैं खामोश
रही....और सोचने लगी,ऐसे बहुत सारे सवाल थे जिनका जवाब में मेरे पास सिर्फ....एक
लम्बी ख़ामोशी थी....जब से मैंने इस घटना के बारे में पढ़ा या सुना है मैं समझ
नही पा रही हूँ की मैं क्या कहू?कैसे कहूँ? मैं उस दिन से हर उस शख्स से बच
रही हूँ जो इस बारे में बात भी करता है क्यों की मैं अगर ये कहूँ की हाँ
मुझे भी दुःख हुआ,वो कम ही होगा क्या? मैं सच में इस घटना से नाराज हूँ या
उससे भी कही ज्यादा मैं दुखी हूँ....सच कहूँ तो बहुत कोशिश की अपने दर्द को
शब्दों में लिखने की पर मेरे शब्दों में इतनी शक्ति ही नहीं जो उस दर्द बयां कर सके, मैं समझ नही पा रही हूँ की मैं किस कानून की बात करूँ ? ऐसा क्या बदल दूँ कि जो कुछ हुआ वो ठीक हो जाए....दुःख होता है जब जिस देश में सोनिया जी,शीला जी, मीरा कुमार जी,मायावती जी जैसे लोग हो वहां भी एक नारी के दर्द को समझाने के लिए हमें सड़को पर उतरना पड़ रहा है, कहते है...एक नारी ही दूसरी नारी का दर्द समझ सकती है पर ये क्या है? मैं हैरान
हूँ की वो आम आदमी अपना सब कुछ छोड़ का निस्वार्थ भाव से सिर्फ इसलिए लड़ रहा
है कि इन्साफ हो सके, और वो अभिनेता जो देश की सेवा करने की बड़ी -बड़ी बाते
करते है वो चुप हो कर देख रहे है...हाँ उन्हें दुःख हुआ ऐसा कह कर चुप क्यों है
? मैं नही समझ पाती हूँ कि अभी कुछ दिन ही हुए अन्ना हजारे के आन्दोलन
में यही अभिनेता आकर समर्थन की बात कर रहे थे, अब जब देश की नारी के सम्मान
की बात हो रही है तो ये ख़ामोशी क्यों है...? बस इन्ही सवालो के जवाब में मुझे सिर्फ एक ख़ामोशी मिली है...ये ख़ामोशी क्यों है??
Wednesday, 26 December 2012
Sunday, 16 December 2012
मेरे हाथो की ये चूड़ियाँ न जाने क्या गुनगुना रही है....!!
मेरे हाथो की ये चूड़ियाँ न जाने,
क्या गुनगुना रही है....
खनक-खनक मेरे हाथो में,
याद तुम्हारी दिला रही है.....
पूछ न ले कोई सबब इनके खनकने का,
मैं इनको जितना थामती हूँ...
नही मानती मेरी बे-धड़क
शोर मचा रही है,
मेरे हाथो की ये चूड़ियाँ
न जाने क्या गुनगुना रही है.....
मैं कुछ कहूँ न कहूँ मेरा हाल-ए-दिल...
मेरी चूड़ियां सुना रही है.....
आज भी तुम्हारी उँगलियों की छुअन से,
मेरी चूड़ियाँ शरमा रही है...
मेरे हाथो की ये चूड़ियाँ न जाने क्या गुनगुना रही है..
मेरी हाथो से है लिपटी,
एहसास तुम्हारा दिला रही है.....
मैं कब से थाम कर बैठी हूँ,
अपनी धडकनों को....
जब भी खनकती है मेरे हाथो में,
धड़कने तुम्हारी सुना रही है.....
मेरे हाथो की ये चूड़ियाँ न जाने क्या गुनगुना रही है..
तुम्हारी तरह ये मुझसे ये रूठती भी है,
रूठ कर टूटती भी है....
मैं इनको फिर मना रही हूँ....
सहज कर अपने हाथो में सजा रही हूँ,
ये फिर मचल कर तुम्हारी बाते किये जा रही है....
मेरे हाथो की ये चूड़ियाँ न जाने क्या गुनगुना रही है..
क्या गुनगुना रही है....
खनक-खनक मेरे हाथो में,
याद तुम्हारी दिला रही है.....
पूछ न ले कोई सबब इनके खनकने का,
मैं इनको जितना थामती हूँ...
नही मानती मेरी बे-धड़क
शोर मचा रही है,
मेरे हाथो की ये चूड़ियाँ
न जाने क्या गुनगुना रही है.....
मैं कुछ कहूँ न कहूँ मेरा हाल-ए-दिल...
मेरी चूड़ियां सुना रही है.....
आज भी तुम्हारी उँगलियों की छुअन से,
मेरी चूड़ियाँ शरमा रही है...
मेरे हाथो की ये चूड़ियाँ न जाने क्या गुनगुना रही है..
मेरी हाथो से है लिपटी,
एहसास तुम्हारा दिला रही है.....
मैं कब से थाम कर बैठी हूँ,
अपनी धडकनों को....
जब भी खनकती है मेरे हाथो में,
धड़कने तुम्हारी सुना रही है.....
मेरे हाथो की ये चूड़ियाँ न जाने क्या गुनगुना रही है..
तुम्हारी तरह ये मुझसे ये रूठती भी है,
रूठ कर टूटती भी है....
मैं इनको फिर मना रही हूँ....
सहज कर अपने हाथो में सजा रही हूँ,
ये फिर मचल कर तुम्हारी बाते किये जा रही है....
मेरे हाथो की ये चूड़ियाँ न जाने क्या गुनगुना रही है..
Tuesday, 11 December 2012
मैं कहाँ शब्दों में बांध पायी हूँ......तुम्हे ......!!!
मैं कहाँ शब्दों में बांध पायी हूँ.......तुम्हे
अब तक जितना भी लिख चुकी हूँ....तुम्हे
फिर भी अधुरा-अधुरा सा रहा है.....
अभी कहाँ पूरी तरह से जान पायी हूँ......तुम्हे
मैं कहाँ शब्दों में बांध पायी हूँ......तुम्हे
मैं कहाँ शब्दों में बांध पायी हूँ......तुम्हे
जब यकीन होता है कि,
तुमने अपना मान लिया है मुझे....
जब भी यकीन होता है कि,
मैंने जान लिया है........तुम्हे,
ये भ्रम भी टूटा है हर बार,
मैं कहाँ खुद में ढाल पायी हूँ.......तुम्हे मैंने जान लिया है........तुम्हे,
ये भ्रम भी टूटा है हर बार,
मैं कहाँ शब्दों में बांध पायी हूँ......तुम्हे ......!!!
Saturday, 1 December 2012
हर पल हर लम्हा........!!!
हर पल हर लम्हा खुद से ही लड़ रही हूँ मैं...
सवाल जवाबो के इन उलझनों में,
खुद के अन्दर चल रहे.....तुफानो से हर पल
बिखर रही हूँ मैं.......
बिखर रही हूँ मैं.......
एक तरफ मेरे साथ मेरी भावनाओ की गहराइयाँ है.....
इक तरफ मेरी तन्हाईयाँ है,
मंजिल की तलाश में दर-दर भटक रही हूँ मैं.....
किसी के इन्तजार में अंजान किसी आहट पर,
सहम कर ठहर रही हूँ मैं......
अपनी चाहतों,अपनी ख्वाइशों में,
अपनी चाहतों,अपनी ख्वाइशों में,
टूटने की हद तक गुजर रही हूँ मैं.......
इक रौशनी की तलाश में कितने,
इक रौशनी की तलाश में कितने,
अंधेरो से घिर रही हूँ मैं.....
इतनी तन्हा हो गयी हूँ कि......
खुद को भी अनजान सी लग रही हूँ मैं........!!!
Wednesday, 14 November 2012
बस अब और नही....!!!
साल बदलते है....तारीखे बदलती है..
घड़ी की सुइयों की तरह,
कुछ भी ठहरता नही है.....
हर साल की तरह दिवाली आती है होली आती है,
न दीयों की रौशनी ही ठहरती है...
न ही होली का कोई रंग ही चढ़ता है...मेरी जिन्दगी में...
हर बार ख्वाब टूटते है उम्मीदे टूटती है....
हर बार सम्हलती हूँ और.....
फिर टूट कर बिखरती हूँ मैं....
हर बार ढूंढ़ कर लाती हूँ खुद को,
और हर बार भीड़ में खो जाती हूँ...
खुद के ही सवालो में उलझ कर रह जाती हूँ ......
सफ़र पर चलती हूँ सबके साथ,
सभी मुझसे आगे निकल जाते है,
और मैं न जाने किसके
इन्तजार में पीछे रह जाती हूँ......
इन्तजार में पीछे रह जाती हूँ......
डायरी के खाली पन्नो की तरह,
मैं भी खाली हो चुकी हूँ....
न शब्द ही मिलते है मुझे,
न ही अर्थ समझ पाती हूँ.....अपने इस खालीपन का...
थक चुकी हूँ....
इन शब्दों से खुद को बहलाते-बहलाते,
थक चुकी हूँ....
थक चुकी हूँ....
खुद को समझाते-समझाते,
बस अब और नही....
बस अब और नही......
ठहर जाना चाहती हूँ.....
बिखर जाना चाहती हूँ,
आसमां में सितारों की तरह....
मिल जाना चाहती हूँ,
मिट्टी में खुसबू की तरह....
बस अब और नही.....अब ठहर जाना चाहती हूँ......!!!
Saturday, 10 November 2012
चलो पंक्तियाँ दियो की लगा देते है...!!!
चलो पंक्तियाँ दियो की लगा देते है,
जहाँ तक हद है नज़रों की,
अँधेरा वहां तक मिटा देते है....
अपनों के लिए बहुत कुछ किया है अभी तक
एक दिया किसी अजनबी के लिए,
जला कर उसे भी अपना बना लेते है....
एक दिया जला कर किसी के बिखरे हुए,
ख्वाबों को समेट कर
उसकी आखों में,
कुछ और ख्वाब सजा देते है....
एक दिया जला कर किसी के उदास चहेरे,
पर एक मुस्कान ला देते है....
एक दिया जला कर किसी के गुजरे हुए,
खुबसूरत लम्हों को आज में मिला देते है....
एक दिया जला कर किसी राहों में,
उसे मंजिल से मिला देते है....
एक दिया जला कर हमसे रूठे हुए
उजालो को मना लेते है,,,,,,
चलो पंक्तियाँ दियो की लगा देते है
जहाँ तक हद है नज़रों की,
अँधेरा वहां तक मिटा देते है........!!!
Thursday, 1 November 2012
कोई मिल जाए ऐसा...!!!
कोई मिल जाए ऐसा..... जो सिर्फ,
मेरे हाथो को थाम कर चलना चाहे.......
कोई मिल जाए......
ऐसा जो मेरे साथ,
चाँद को निहारते हुए सारी रात गुजारना चाहे........
कोई मिल जाए ऐसा....
जो मेरी ख़ामोशी को समझ जाए,
जो मेरी मेरी धडकनों को सुनना चाहे.........
कोई मिल जाए ऐसा...
जिसके काँधे पर सर रख,
मैं दुनिया को भूल जाऊं....
जो मेरी साँसों में घुलना चाहे.........
कोई मिल जाए ऐसा...
जिसकी आखों में,
मैं बेइंतहा प्यार देखूं,
जो मेरी आखों में,
सिर्फ खुद को देखना चाहे......
कोई मिल जाए ऐसा.....
जिससे हर बार मैं जीत जाऊं,
जो मेरी एक मुस्कान पर....
अपना सब कुछ हारना चाहे.......
कोई मिल जाए ऐसा...
जिसके साथ गुजरा इक-इक पल,
एक पूरी जिन्दगी लगे...
जो सिर्फ मेरे साथ....
अपनी पूरी जिन्दगी जीना चाहे......
कोई मिल जाए ऐसा...
जिसके सजदे सर,
मेरा हमेशा झुकता रहे,
जो अपनी दुआओं में...
मुझे ही पाना चाहे....
कोई मिल जाए ऐसा...जिसका एहसास,
मेरी हर कविता में हो,
जो मेरे लिखे...
हर शब्द का अर्थ बनना चाहे......!!!
Wednesday, 17 October 2012
कोई रिश्ता है हमारा......... !!!
इस रिश्ते को क्या नाम दूँ..?
सिर्फ महसूस होता है....
कि हमारा कोई रिश्ता है.....
नज़र नही आता किसी को,
दिखाई देता भी नही है...
सिर्फ हवा के झोकों के साथ,
साँसों को महसूस होता है...
कि हमारा कोई रिश्ता है..
पन्नो पे लिखा जा सकता नही,
शब्दों में बांधा जा सकता नही..
निशब्द सा कोई रिश्ता है हमारा......
ख्वाबों में भी सजाया जा सकता नही,
ख्यालों में भी लाया जा सकता नही...
धडकनों के साथ महसूस होता है...
कि हमारा कोई रिश्ता है....
सवाल कोई करता नही,
ज़वाब भी कोई चाहता नही....
निरूत्तर सा है कोई रिश्ता है हमारा....
आगाज़ कोई करता नही,
अंजाम भी कोई चाहता नही,
अनंत सा है कोई रिश्ता है हमारा.....
ना कुछ कहना चाहता है किसी से,
ना ही कुछ सुनना चाहता है किसी से....
ख़ामोशी को बयां करता कोई रिश्ता है हमारा...........
ना किसी सफ़र की चाह है इसको,
ना किसी मंजिल की तलाश है इसको...
मेरी परछाई के साथ-साथ चलता....
कोई रिश्ता है हमारा.........
Saturday, 6 October 2012
ऐसा कोई जिक्र नही करना चाहती हूँ......!!!
अपनी पुरानी डायरी में तुम्हे संजोना चाहती हूँ.....
चंद खुबसूरत लब्जों में तुम्हे पिरोना चाहती हूँ.....
कुछ पंक्तियों में जिक्र तुम्हारी बातो का करना चाहती हूँ....
जिक्र तुम्हारे साथ सुबह और शामो का करना चाहती हूँ....
कुछ पंक्तियों में जिक्र मेरे रूठने तुम्हारे मनाने का करना चाहती हूँ.....
जिक्र उन खुबसूरत लम्हों का करना चाहती हूँ......
जिनमे तुमने साथ चलते-चलते....
यूँ ही अचानक मेरे हाथो को थाम लिया था.....
जिक्र उस लम्हे का करना चाहती हूँ,
जब बिना बात के तुमने मेरा नाम लिया था......
मैं जिक्र तुम्हारी हँसी का...
बहुत कुछ कहती तुम्हारी ख़ामोशी का करना चाहती हूँ.....
मैं अपनी डायरी में तुम्हारी हर बात करना चाहती हूँ....
तुम मुझे छोड़ कर जाओगे,
ऐसा कोई जिक्र नही करना चाहती हूँ...
तुम्हारे साथ हर सफ़र तय करना चाहती हूँ....
तन्हा मंजिल तक पहुची हूँ....ऐसा कोई जिक्र नही करना चाहती हूँ......
Wednesday, 15 August 2012
मैं कुछ लिखना चाहती हूँ......!!!
आज लिखते-लिखते यूँ ही मेरे हाथ थम गए थे....
जाने क्यों आज शब्दों की पंक्तियाँ नही बन रही है..
मैं लिख तो रही हूँ पर शब्द बिखरे -बिखरे ,
इधर-उधर पड़े है....
जाने क्यों मन की उथल-पुथल,
मेरे शब्दों में दिख रही है।.....
मैं जितनी ही कोशिश करती हूँ,
मन को शांत करके शब्दों को समेटने की,
उन्हें पिरोने की...
उतनी ही बार मेरे हाथो से,
ये शब्द रेत की तरह निकल जाते है...और
मैं मौन सिर्फ देखती रहती हूँ.......
आज मैं सोच में हूँ कि...
मैं क्यों लिखना चाहती हूँ ......??
शायद मन को शांत करने के लिये,
अपनी उलझनों को शब्दों में उतर देना चाहती हूँ......या
शब्दों को मरहम से मन को शांत करना चाहती हूँ......
हो.....कुछ भी हो....सच तो ये है कि...
मैं कुछ लिखना चाहती हूँ।.....
कुछ ऐसा जो अभी तक खुद से भी नही कह पायी हूँ......
पर क्या है वो.......
अब यही समझना है.....
जाने क्यों आज शब्दों की पंक्तियाँ नही बन रही है..
मैं लिख तो रही हूँ पर शब्द बिखरे -बिखरे ,
इधर-उधर पड़े है....
जाने क्यों मन की उथल-पुथल,
मेरे शब्दों में दिख रही है।.....
मैं जितनी ही कोशिश करती हूँ,
मन को शांत करके शब्दों को समेटने की,
उन्हें पिरोने की...
उतनी ही बार मेरे हाथो से,
ये शब्द रेत की तरह निकल जाते है...और
मैं मौन सिर्फ देखती रहती हूँ.......
आज मैं सोच में हूँ कि...
मैं क्यों लिखना चाहती हूँ ......??
शायद मन को शांत करने के लिये,
अपनी उलझनों को शब्दों में उतर देना चाहती हूँ......या
शब्दों को मरहम से मन को शांत करना चाहती हूँ......
हो.....कुछ भी हो....सच तो ये है कि...
मैं कुछ लिखना चाहती हूँ।.....
कुछ ऐसा जो अभी तक खुद से भी नही कह पायी हूँ......
पर क्या है वो.......
अब यही समझना है.....
Friday, 3 August 2012
हर दिन दोस्ती का होता है.....!!!
जिन्दगी का हर दिन दोस्ती का होता है.....
पर हम रोज़ अपने दोस्तों से ये नही कहते....
कि हम उनका ख्याल रखते है.....
वो एहसास जो हमारे दिल में
अपने दोस्तों के लिए होता है....
उस एहसास का एहसास,
अपने दोस्तों को दिलाने के लिए
ये खास दिन जो सिर्फ,
दोस्ती के नाम हो गया......
दूरियों में सदियाँ बीत जाती है....
यादे धुंधली हो जाती है.....
जिन्दगी हमसे बहुत दूर हो जाती है.....
पर पास आने के लिए...
इक लम्हा ही काफी होता है.......क्यों ना.....
इस लम्हे को जी भर जी ले
सिर्फ दोस्तों के लिए.......
Wednesday, 1 August 2012
Thursday, 26 July 2012
मैंने तुम्हे याद किया है.....!!!
गुजरते हुए हर लम्हे के साथ,
आने वाले हर पल के साथ,
मैंने तुम्हे याद किया है.....
टूटते बिखरते सपनो के साथ,
हर अनजाने और अपनों के साथ,
मैंने तुम्हे याद किया है.....
तनहा अपने ख्यालो के साथ,
जिन्दगी के उलझते सवालो के साथ,
मैंने तुम्हे याद किया है....
कागज़ पर अनलिखे शब्दों के साथ,
अपनी कविताओं के अनकहे अर्थो के साथ....
मैंने तुम्हे याद किया है.....
तारो को गिनते-गिनते गुजरती रातो के साथ,
तुम्हारे बिन ढलती शामों के साथ,
मैंने तुम्हे याद किया है....
मंजिल को भटकती राहो के साथ,
हर सफ़र पर तुम्हे तलाशती आखों के साथ,
मैंने तुम्हे याद किया है.....
इस तरह तुम मेरी जिन्दगी के हर लम्हे में शामिल हो,
मैंने तुम्हे याद किया आती जाती सांसो के साथ......
आने वाले हर पल के साथ,
मैंने तुम्हे याद किया है.....
टूटते बिखरते सपनो के साथ,
हर अनजाने और अपनों के साथ,
मैंने तुम्हे याद किया है.....
तनहा अपने ख्यालो के साथ,
जिन्दगी के उलझते सवालो के साथ,
मैंने तुम्हे याद किया है....
कागज़ पर अनलिखे शब्दों के साथ,
अपनी कविताओं के अनकहे अर्थो के साथ....
मैंने तुम्हे याद किया है.....
तारो को गिनते-गिनते गुजरती रातो के साथ,
तुम्हारे बिन ढलती शामों के साथ,
मैंने तुम्हे याद किया है....
मंजिल को भटकती राहो के साथ,
हर सफ़र पर तुम्हे तलाशती आखों के साथ,
मैंने तुम्हे याद किया है.....
इस तरह तुम मेरी जिन्दगी के हर लम्हे में शामिल हो,
मैंने तुम्हे याद किया आती जाती सांसो के साथ......
Friday, 20 July 2012
Sunday, 1 July 2012
......छोड़ आयी हूँ......!!!
मैं खुद को किसी के इन्तजार में,
किसी मोड़ तनहा छोड़ आयी हूँ.
ख़ुशी से झूमी थी जिस लम्हे,
किसी मोड़ पर वो लम्हा छोड़ आयी हूँ....
सुई में रंग-बिरंगे धागों को पिरो कर
कुछ फूलो को गढ़ आयी हूँ...
उन्ही फूलो में कुछ रंग-बिरंगे,
सपने छोड़ आयी हूँ.....
सहज कर रखी थी जो गुड़ियाँ,
उसके पास कही अपना बचपन छोड़ आयी हूँ.....
कितनी ही कागज़ की नाव बना कर,
बारिश में बहा दी थी....
उनमे कुछ डूबतीहुई,कुछ तैरती छोड़ आयी हूँ.....
सावन में झूलो पर झूली थी जिनके साथ..
वो सहेलियां छोड़ आयी हूँ.....
सुलझा न पायी थी जिन्हें,
कुछ पहेलियाँ छोड़ आयी हूँ......!!!
Monday, 18 June 2012
बहुत मुश्किल सा दौर है ये.....!!!
बहुत मुश्किल सा दौर है ये...
किसी को समझना इतना मुश्किल होगा...
ये नही पता था ?
जिन्दगी इस रूप में भी आएगी,
कुछ था जो खामोश था..
कुछ अनकहा था.....
पर क्या था?
ये भी नही पता था....!!!
जवाब ढूंढ़ रही हूँ पर क्यू?
शायद सवालो का भी नही पता था......
बहुत मुश्किल सा दौर है ये...
उसको को समझना इतना मुश्किल होगा...
ये नही पता था?????
कुछ पूछना था शायद किसी से,
या कुछ बताना था शायद मुझको
ख़ामोशी कुछ इस तरह फैली थी हमारे बीच
यूँ लग रहा था,
कहने और सुनने के लिए कुछ नही बचा था .............
Thursday, 7 June 2012
मैं डाली फूलो की थी.....
मैं डाली फूलो की थी,
मैं खुशबु बागो की थी
कभी मैं शोखी झूलो की थी
तितली मैं हुआ करती थी....
ख्वाबो में रंग भरा करती थी,
कभी बाते परियों की मैं भी किया करती थी
चिड़ियों के साथ दूर आसमान तक
मैं उड़ा करती थी...
बादलो की तरह सखियों के साथ,
लुका-छिपी भी खेला करती थी..
वो वक़्त भी कितना हसीं था,
कुछ भी नही था...
फिर भी खुशियों की कमी न थी......
बारिशो में पहले भी भीगा करती थी,
बूंदों से खेलना अच्छा लगता था
बारिशों में आज भी भीगती हूँ,
क्यों कि बूंदों के संग,
आसुओं का बह जाना अच्छा लगता है...
कभी किसी टूटते सितारे से अपने,
सपने पूरे होने कि दुआ माँगा करती थी.
आज उसी टूटते सितारे के साथ,
कोई इक सपना टूटता है मेरा.....
कभी यादों को संजो,
छोटी-छोटी चीजो को भी,
समेट कर रख लेती थी...
आज रिश्तों को संजोती हूँ,
तो जिन्दगी बिखर जाती है...
जिन्दगी को सम्हालती हूँ,
तो रिश्ते बिखर जाते है....
कितना अजीब है न.........
Friday, 1 June 2012
वो खुद मिल गया है मुझे...मंजिल बन कर...
इक शख्स मुझको यूँ ही,
किसी मोड़ पर मिल गया था....
कुछ बात तो नही हुई थी,
उस पहली मुलाकात में....
फिर भी इक अनजाना सा एहसास था,
उसके मेरे साथ होने पर....
उसकी आवाज़ थी जो ना जाने कब,
सीधे मेरे दिल में उतर गयी थी.....
उसकी आखें जो दिल की,
सारी बाते कह जाती थी....
ये शायद उसको भी पता नही था.....
वो अनजान था अपने ही दिल से,
मैं न जाने कब उसके दिल के,
इतने करीब आ गयी....
कहाँ कुछ भी नही था उसने,
सुना मैंने भी कुछ नही था,
उसकी खामोशियाँ सब कह रही थी....और
मैं नही मेरी धड़कने सब समझ रही थी.....
कुछ भी इक जैसा नही था हमारे बीच,
फिर हम इक-दूसरे के होते जा रहे थे......
इक शख्स मुझको यूँ ही,
किसी मोड़ पर मिल गया था....
सुना तो था की जिन्दगी का कोई मोड़,
हमें किसी न किसी मंजिल पर पहुँचाता है....
पर इस मोड़ पर वो खुद मिल गया है मुझे...मंजिल बन कर....
Wednesday, 23 May 2012
मेरी डायरी..... !!!
फिर आज पुरानी डायरी के,
पन्ने पलट रही हूँ..
पन्ने पलट रही हूँ..
मैं जिन्दगी के गुजरे
लम्हों को पलट रही हूँ...
मेरी ख्वाइशों की तरह,
मेरी डायरी भी जिम्मेदारियों के,
बोझ तले दबी थी कही....
बोझ तले दबी थी कही....
मैं खुद को छोड़ कर आगे बढ़ती तो रही,
पर हर मोड़ पर डायरी में बंद खुद को ढूढती रही..
पन्नो में लिखे कुछ शब्द भी धुंधले से हो गए है
गुजरे लम्हों के साथ इन शब्दों के अर्थ भी कही खो गए है.....
फिर आज मैं क्या थी? मैं क्या हूँ?
इन सवालो में उलझ गयी हूँ,
मेरी भावनाओं से बंधे थे कभी ये शब्द...
आज उन्ही भावनाओं से टूट कर बिखर गयी हूँ...
फिर आज अपनी लिखी पंक्तियों से,
जिन्दगी के लिए कुछ
साँसे उधार मांग रही हूँ....
जो खो गया है कही,
इन पंक्तियों से वो प्यार मांग रही हूँ....
आज न जाने क्यों मेरे ही लिखे शब्द,
मुझे बेगाने लग रहे है.....
मैं इन्हें पढ़ रही हूँ ऐसे,
जैसे किसी बिछड़ी हुई,
सहेली के किस्से पुराने लग रहे है.....
अभी कुछ पन्ने ही पलटे थे मैंने,
कि इन शब्दों में खोती जा रही थी...
मैं गुम न जाऊं उन सपनो में
इस डर से जल्दी से डायरी मैंने बंद कर दी....
खुद से खुद की मुलाकात न हो जाए,
इससे पहले मैं इस डायरी को,
वही छुपा कर रख आई हूँ....
अब एहसास हुआ की,
मेरी डायरी कही गुम नही हुई थी.....
अपनी ख्वाइशे की तरह,
मैं खुद अपनी डायरी छिपा आई थी.....
Monday, 14 May 2012
ये दूरियाँ.....!!!
इतने पास हो तुम,
फिर भी तुमसे,
सरहदों की दूरियाँ लगती है.....
जितनी बेचैन करती है मुझे,
उतनी ही खुबसूरत ये दूरियाँ लगती है....
कभी ये कितनी यादे,ख्यालों को संजोती,
ये दूरियाँ लगती है....
कभी संजो कर रक्खी हर याद को बिखेरती,
ये दूरियाँ लगती है.....रिश्तो और जिन्दगी का हर रूप दिखाती,
ये दूरियाँ लगती है........
कभी नजदीकियां बढ़ा देती है..ये दूरियाँ,
कभी यादें भी मिटा देती है...ये दूरियाँ....
हमारे रिश्तो का इम्तहान सा लेती....
ये दूरियाँ लगती है.....
Saturday, 12 May 2012
माँ तो सिर्फ 'माँ' होती है.....!
कहते है की हर किसी के साथ ईश्वर नही आ सकता था
तो उसने सबके लिए 'माँ' को बना दिया.....!!!
हमारी हर गलती को माफ़ कर देती है
हर मुस्किल में हमारा साथ देती है
सवाल मुझसे करे कोई जवाब वो देती है
हम हमेशा बच्चे है उसकी नज़र में
माँ तो सिर्फ 'माँ' होती है.....!!
हमें प्यार देती है
दुलार देती है
अपने त्याग और संघर्ष से
हमारा जीवन संवार देती है
हमारे सपनो को पूरा करने के लिए
अपनी सारी उम्र गुजार देती है
माँ तो सिर्फ 'माँ' होती है...!!!
Tuesday, 8 May 2012
सिर्फ तुम्हारी हूँ....!!!
ना जाने कितनी बाते करनी होती है तुमसे.....
कहना था की मुझे कुछ मिले न मिले...
लेकिन जिन्दगी के हर मोड़ पर..
तुम मेरे साथ रहना..
सिर्फ तुम्हारे इक साथ के लिए
मैं अपनी हर ख़ुशी,हर ख्वाइश छोड़ दूंगी,
मेरे लिए कभी भी तुम्हारा,
ये प्यार कम ना हो.....
मैं सच में वैसी नही हूँ...
शायद तुम्हारी कल्पनाओं,
जैसी भी नही हूँ...
फिर भी जैसी भी हूँ...
सिर्फ तुम्हारी हूँ....
दिल से बहुत जुड़ते है रिश्ते...
मैंने अपनी भावनाओं,
अपने सपनो को....
अपनी ख़ुशी को जोड़ दिया है तुमसे.....
कुछ नही हूँ तुम्हारे बिना....
अपनी पहचान को भी तुमसे ही जोड़ा है....
अब जैसी भी हूँ... जो भी हूँ.. सिर्फ तुम्हारी हूँ....
Monday, 30 April 2012
ये रास्ते जिन्दगी के....ये रिश्ते जिन्दगी के......!!!
ये रास्ते जिन्दगी के....ये रिश्ते जिन्दगी के.....
आज उस मोड़ पर आ पहुंची हूँ मैं,जहाँ रास्तो और रिश्तो में
किसी एक को अपनाना है मुझे.....
रास्ते वो जो मंजिल तक ले जायेंगे मुझे,
रिश्ते वो जिनके बिना मंजिल मिल जाने पर भी, ख़ुशी अधूरी है मेरी.....
आज उस मोड़ पर आ पहुंची हूँ ....जहाँ
मंजिल और खुशियों में,
किसी एक को अपनाना है मुझे....
कुछ रास्ते ऐसे भी है...
जो हर रिश्ते से आगे ले जायेंगे,
इक अलग मुकाम दिलायंगे मुझे...
पर खड़ी हूँ सोच में हूँ..
क्या रिश्तो के बिना ये मुकाम,
मेरी पहचान दिला पायेंगे मुझे...
आज उस मोड़ पर आ पहुंची...जहाँ
मुकाम और पहचान में,
किसी एक को अपनाना है मुझे....
जिन्दगी ने मुझे ऐसे,
दो राहे पर ला कर खड़ा कर दिया है,
जहाँ ग़र रास्तो को चुनती हूँ तो....
रिश्तो को खो दूंगी.....
ग़र रिश्तो को चुनती हूँ तो...
खुद को खो दूंगी मैं......
जिसको भी चुनूगी हार मेरी ही होगी....
सोच में हूँ जिन्दगी का सफ़र,
इस मोड़ पर ही खत्म क्यों नही हो जाता .....
ये रास्ते जिन्दगी के....ये रिश्ते जिन्दगी के......!!!
Monday, 23 April 2012
ना जाने क्यों डर सा लगता है.....!!!
ना जाने क्यों डर सा लगता है..
पा लूँगी कुछ मैं भी..
खो दूंगी कुछ मैं भी....
सब कुछ बिखरा-बिखरा सा लगता है....
ना जाने क्यों डर सा लगता है...
मुड-मुड कर देखती हूँ तुमको,
हर आहट पर यूँ ही रुक भी जाती हूँ....
ये दिल भी कुछ दीवाना सा लगता है.....
ना जाने क्यों डर सा लगता है...
तलाश में हूँ मंजिल की,
सफ़र पर तन्हा नही हूँ मैं...
मेरे साथ चलता,
तुम्हारा साया सा लगता है.....
जब से मिली हूँ तुमसे,
जब से तुम्हे माना है अपना..
न जाने क्यों हर कोई अपना-अपना सा लगता है......
ना जाने क्यों डर सा लगता है...!!!Wednesday, 11 April 2012
मेरी अनकही बातो को तुम्हे समझते देखा है.......!!!
मेरी हर आहट पर तुम्हे ठहरते देखा है.....
मेरी धडकनों के साथ,
तुम्हारी धडकनों को धड़कते देखा है....
सबसे नजरे बचा कर,
छुपते-छुपाते तुमको मुझे देखते देखा है......
जिस राह से मैं गुजरी हूँ....
उन राहों में मेरे कदमो के निशां पर,
तुम्हे अपने कदमो को रखते देखा है......
मेरी हर बात पर छुप कर सबसे,
तुम्हे मुस्कराते देखा है....
मैंने कही भी नही है जो बाते तुमसे,
उन बातो को मेरी आखों में तुम्हे पढते देखा है.......
मैंने कहा कुछ भी नही है....
फिर भी लगता है कि
अब कहने के लिए रहा कुछ नही है.....
मेरी अनकही बातो को तुम्हे समझते देखा है.......
Wednesday, 4 April 2012
सिर्फ महसूस किये जाते है......!!!
कुछ एहसासों को लब्ज़ नही मिलते,
वो सिर्फ महसूस किये जाते है......
उन्हें शब्द हम क्या दे...उन्हें अर्थ हम क्या दे.....?
जो अनजाने में इस दिल से जुड़ जाते है....
साथ होते है फिर भी तन्हाई सी रहती है,
बाते तब भी होती है..
जब खामोश हम हो जाते है.....
फिर कहाँ कुछ कहने-सुनने को कुछ बाकी रहता है,
जब एहसासों से ही एहसास समझे जाते है....
नाम उसे हम क्या दे?
जिसकी एक झलक दिख जाने भर से,
दिल को मीठी सी ख़ुशी होती है.....
क्या बतलायेंगे किसी को....?
जो न पूरी सच्ची होती है...जो न पूरी झूठी होती है......
यादे कुछ यूँ भी बन जाती है.....
जो याद नही आती सिर्फ दिल को महसूस होती है....
गुजरे लम्हों के साथ.. कुछ है जो गुजरता जा रहा है...
हलचल सी मची है दिल में.....
ख़ामोशी है...तन्हाई है....
फिर भी साथ मेरे है कोई.....
जो सपना सा... अपना सा है....
हर पल इस दिल को एहसास दिला रहा है.....
Tuesday, 6 March 2012
इस बार होली कुछ ऐसे ही खेलूंगी मैं.....!!!
इन रंगों से थोड़े रंग
खुशियों के लेकर,
सबके जीवन में घोलूँगी मैं.....
इस बार होली कुछ ऐसे ही खेलूंगी मैं.....
भूल से दुःख दिया हो जो किसी को,
अपनी हर भूल की माफ़ी मांग लूँगी मैं....
रिश्तो में रंग ऐसे घोलूँगी मैं,
हर रिश्ते को एक धागे में बांध लूँगी मैं,
इस बार होली कुछ ऐसे ही खेलूंगी मैं.....
जो छूट गये हैं उनको भी साथ ले लूँगी मैं,
जो रूठ गये हैं उनको भी मना लूँगी मैं....
हर रंग को अपने रंग में मिला लूँगी मैं,
इस बार होली ऐसे ही खेलूंगी मैं.....
पल-पल जाते इन पलो से कुछ पल,
अपनी मुट्ठी में समेट लूँगी मैं...
नहीं भूलूंगी ये होली,
इन पलों में जी भर जी लूँगी मैं....
इस बार होली ऐसे ही खेलूंगी मैं.....
Saturday, 3 March 2012
मैं ही नारी हूँ......!!!
मैं ही नारी हूँ....
सदियों से मुझ पर बहुत कुछ
लिखा गया, पढ़ा गया....
कहने वालो को भी देखा है मैंने....
सुनने वालो को भी देखा है मैंने.....
सोच में हूँ..........
क्यों मुझे इतना समझने....
समझाने की जरुरत पड़ी है दुनिया को?
क्या मैं अबला हूँ?
क्या मैं मजबूर हूँ?
क्या मैं कमजोर हूँ?
या सिर्फ इसलिए कि.....मैं नारी हूँ....
मैं नही समझ पायी कभी कि,
मैं तो संसार के हर घर में जीतीजागती मौजूद हूँ......
फिर मुझे समझने के लिये लोग घर के बाहर
किताबो को क्यों पढ़ रहे है....?
क्या मैं सिर्फ पढने,लिखने-सुनने का ही
विषय बन कर रह गयी हूँ.....???????
मुझे महान देवी जैसी उपाधि देकर,
कुछ लोग एक दिन महिला दिवस तो मना लेते है,
पर घर में ही मौजूद नारी को ही भूल जाते है......
मैं उन्हें कैसे समझाऊं कि "मैं भी नारी हूँ"
मुझे बड़े-बड़े सम्मान नही,
अपने परिवार का साथ और प्यार चहिये....
मुझे देवी माँ नही सिर्फ "माँ" ही बने रहने दो....
त्याग और समपर्ण सब मेरे कर्त्तव्य है...
इनके लिये कोई पुरूस्कार रहने दो.....
मैं क्या हूँ?
ये कही बाहर से नही समझना है...
हर घर में मौजूद "मैं ही नारी हूँ".....
सिर्फ इतना समझना है......
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