फिर आज पुरानी डायरी के,
पन्ने पलट रही हूँ..
पन्ने पलट रही हूँ..
मैं जिन्दगी के गुजरे
लम्हों को पलट रही हूँ...
मेरी ख्वाइशों की तरह,
मेरी डायरी भी जिम्मेदारियों के,
बोझ तले दबी थी कही....
बोझ तले दबी थी कही....
मैं खुद को छोड़ कर आगे बढ़ती तो रही,
पर हर मोड़ पर डायरी में बंद खुद को ढूढती रही..
पन्नो में लिखे कुछ शब्द भी धुंधले से हो गए है
गुजरे लम्हों के साथ इन शब्दों के अर्थ भी कही खो गए है.....
फिर आज मैं क्या थी? मैं क्या हूँ?
इन सवालो में उलझ गयी हूँ,
मेरी भावनाओं से बंधे थे कभी ये शब्द...
आज उन्ही भावनाओं से टूट कर बिखर गयी हूँ...
फिर आज अपनी लिखी पंक्तियों से,
जिन्दगी के लिए कुछ
साँसे उधार मांग रही हूँ....
जो खो गया है कही,
इन पंक्तियों से वो प्यार मांग रही हूँ....
आज न जाने क्यों मेरे ही लिखे शब्द,
मुझे बेगाने लग रहे है.....
मैं इन्हें पढ़ रही हूँ ऐसे,
जैसे किसी बिछड़ी हुई,
सहेली के किस्से पुराने लग रहे है.....
अभी कुछ पन्ने ही पलटे थे मैंने,
कि इन शब्दों में खोती जा रही थी...
मैं गुम न जाऊं उन सपनो में
इस डर से जल्दी से डायरी मैंने बंद कर दी....
खुद से खुद की मुलाकात न हो जाए,
इससे पहले मैं इस डायरी को,
वही छुपा कर रख आई हूँ....
अब एहसास हुआ की,
मेरी डायरी कही गुम नही हुई थी.....
अपनी ख्वाइशे की तरह,
मैं खुद अपनी डायरी छिपा आई थी.....
आज न जाने क्यों मेरे ही लिखे शब्द,
ReplyDeleteमुझे बेगाने लग रहे है.....
मैं इन्हें पढ़ रही हूँ ऐसे,
जैसे किसी बिछड़ी हुई,
सहेली के किस्से पुराने लग रहे है....... फिर से एक बेहतरीन रचना
डायरी तो छुपाया जा सकता है पर खुद को ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर सुषमा जी....
ReplyDeleteडायरी में हम छिपा रखते हैं खुद को........
अपने साथ अपने अधूरे ख़्वाबों को भी......
बहुत सुंदर.
अनु
भाव प्रधान सुन्दर अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण रचना...बधाई स्वीकारें.
ReplyDeleteनीरज
पन्नो में लिखे कुछ शब्द भी धुंधले से हो गए है
ReplyDeleteगुजरे लम्हों के साथ इन शब्दों के अर्थ भी कही खो गए है..... speechless realy very nice....
वाह ! बेहद खूबसूरती से कोमल भावनाओं को संजोया इस प्रस्तुति में आपने ...
ReplyDeleteआज न जाने क्यों मेरे ही लिखे शब्द,
ReplyDeleteमुझे बेगाने लग रहे है.....
मैं इन्हें पढ़ रही हूँ ऐसे,
जैसे किसी बिछड़ी हुई,
सहेली के किस्से पुराने लग रहे है.....
bhut hi khubsurat..
बहुत सुन्दर गहरे भाव है..
ReplyDeleteडायरी से जुडाव ही ऐसा होता है
ये एकमात्र ऐसी खास सहेली है
जिससे अपनी सारी बाते बेझिझक कह सकते है...
अपने बहुत सुन्दरता से इसे व्यक्त किया है..
अति उत्तम शानदार रचना...:-)
अब एहसास हुआ की,
ReplyDeleteमेरी डायरी कही गुम नही हुई थी.....
अपनी ख्वाइशे की तरह,
मैं खुद अपनी डायरी छिपा आई थी
डायरी छिपाने की आदत लगभग सभी को होती है।
यथार्थपरक कविता।
अब एहसास हुआ की,
ReplyDeleteमेरी डायरी कही गुम नही हुई थी.....
अपनी ख्वाइशे की तरह,
मैं खुद अपनी डायरी छिपा आई थी.....
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,बेहतरीन रचना,,,,,
MY RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि,,,,,सुनहरा कल,,,,,
बहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteसादर
आज न जाने क्यों मेरे ही लिखे शब्द,
ReplyDeleteमुझे बेगाने लग रहे है.....
bahut achhi rachana hai...
आज न जाने क्यों मेरे ही लिखे शब्द,
ReplyDeleteमुझे बेगाने लग रहे है.....
मैं इन्हें पढ़ रही हूँ ऐसे,
जैसे किसी बिछड़ी हुई,
सहेली के किस्से पुराने लग रहे है...
जीवन के कुछ कडुवे लम्हे ... विशवास उठा देते हैं खुद अपने आप से ही ... अपना ही सब कुछ बेगाना लगने लगता है ...
बहुत गहन और सुन्दर पोस्ट।
ReplyDeleteजीवन के उहा पोह में , बहुत कुछ छूट जाता है ...भुला जाता है ....और फिर जब उस पुराने से साक्षात्कार होता है ...तो लगता है ,यह कौन है...यह मैं हूँ ...यह मैं तो नहीं......
ReplyDeletebahut achchi lagi......
ReplyDeleteयादोँ का सरमाया ये डायरी .....
ReplyDeleteशुभकामनाएँ!
बहुत सुंदर
ReplyDeleteवाह ... हमेशा की तरह बेहतरीन लिखा है आपने ...
ReplyDeleteआज न जाने क्यों मेरे ही लिखे शब्द,
ReplyDeleteमुझे बेगाने लग रहे है.....
We relive such instances so often!
गुज़री यादों का पुलिंदा है..अतीत का झरोखा..
ReplyDeleteयह डायरी फलती फूलती रहे.. :)
खुद से खुद की मुलाकात न हो जाए,
ReplyDeleteइससे पहले मैं इस डायरी को,
वही छुपा कर रख आई हूँ....
achchha kiya...:)
bahut behetareen:)
आज न जाने क्यों मेरे ही लिखे शब्द,
ReplyDeleteमुझे बेगाने लग रहे है.....
मैं इन्हें पढ़ रही हूँ ऐसे,
जैसे किसी बिछड़ी हुई,
सहेली के किस्से पुराने लग रहे है..... वाह ...
बहुत सुंदर कविता...
वाह!!! बहुत खूब लिखा है आपने....
ReplyDeleteफिर आज अपनी लिखी पंक्तियों से,
ReplyDeleteजिन्दगी के लिए कुछ
साँसे उधार मांग रही हूँ....
जो खो गया है कही,
इन पंक्तियों से वो प्यार मांग रही हूँ....
....एक बेहतरीन भावमयी रचना...
खुद से खुद की मुलाकात न हो जाए,
ReplyDeleteइससे पहले मैं इस डायरी को,
वही छुपा कर रख आई हूँ....
अब एहसास हुआ की,
मेरी डायरी कही गुम नही हुई थी.....
अपनी ख्वाइशे की तरह,
मैं खुद अपनी डायरी छिपा आई थी...
मन के भावों का सुन्दर चित्रण..
बहुत खूब लिखा है...बेहतरीन रचना...सुंदर प्रस्तुति..आभार
ReplyDeleteपढ़े इस लिक पर
दूसरा ब्रम्हाजी मंदिर आसोतरा में जिला बाडमेर राजस्थान में बना हुआ है!
....
sach me apni dairy apni jindgi ka aaina hoti hai jsme bahut si bhu bisri baaten ham sahejte chalte hain .
ReplyDeletewaqt pdne par usko ek baar khool kar padh lena achha hota hai.
is bhavnatmak prastuti ke liye hardik badhai----
poonam
खुद से खुद की मुलाकात न हो जाए,
ReplyDeleteइससे पहले मैं इस डायरी को,
वही छुपा कर रख आई हूँ....
अब एहसास हुआ की,
मेरी डायरी कही गुम नही हुई थी.....
अपनी ख्वाइशे की तरह,
मैं खुद अपनी डायरी छिपा आई थी..
सुषमा जी ..बहुत सुन्दर गहन भाव ,,बहुत कुछ बदल जाता है धुंधला हो जाता है ..आइये वर्तमान को संवार लें
अपनी प्रोफाईल में दिए लिंक को ठीक कर लें ऐसे http://sushma-aahuti.blogspot.in/
भ्रमर ५
sundar kavita
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा लिखा है...बेहतरीन रचना..
ReplyDeleteसच में कई बार अपना ही अतीत अपना नहीं लगता, अपना खुद भी अनजाना लगता है. सुन्दर अभिव्यक्ति, बधाई.
ReplyDeleteमैं गुम न जाऊं उन सपनो में
ReplyDeleteइस डर से जल्दी से डायरी मैंने बंद कर दी....
सुंदर एह्सास ...!!
शुभकामनायें
खुद से खुद की मुलाकात न हो जाए,
ReplyDeleteइससे पहले मैं इस डायरी को,
वही छुपा कर रख आई हूँ....mann ki saxhchai likh dali
bahut sundar
खुद से खुद की मुलाकात न हो जाए,
ReplyDeleteइससे पहले मैं इस डायरी को,
वही छुपा कर रख आई हूँ....................बहुत अच्छी तरह व्यक्त हुए हैं आपके विचार कविता में !
डायरी के कुछ पन्ने हमेशा अनछुए रह जाते हैं ...जो वक्त वक्त पर बहुत याद आते हैं ......
ReplyDelete.......
ReplyDeleteफिर आज अपनी लिखी पंक्तियों से,
जिन्दगी के लिए कुछ
साँसे उधार मांग रही हूँ....
जो खो गया है कही,
इन पंक्तियों से वो प्यार मांग रही हूँ....
क्या लिखा है आपने , काफी सुंदर रचना !!
बधाई ....
Diary !!!
ReplyDeleteA true companion !!!
Thanks for sharing, nice one