Monday 23 April 2012

ना जाने क्यों डर सा लगता है.....!!!

ना जाने क्यों डर सा लगता है..                            
पा लूँगी कुछ मैं भी..
खो दूंगी कुछ मैं भी....
सब कुछ बिखरा-बिखरा सा लगता है....
ना जाने क्यों डर सा लगता है...

मुड-मुड कर देखती हूँ तुमको,
हर आहट पर यूँ ही रुक भी जाती हूँ....
ये दिल भी कुछ दीवाना सा लगता है.....
ना जाने क्यों डर सा लगता है...

तलाश में हूँ मंजिल की,
सफ़र पर तन्हा नही हूँ मैं...
मेरे साथ चलता,
तुम्हारा साया सा लगता  है.....
जब से मिली हूँ तुमसे,
जब से तुम्हे माना है अपना..
न जाने क्यों हर कोई अपना-अपना सा लगता है...... 
ना जाने क्यों डर सा लगता है...!!!

41 comments:

  1. अपने साए के बिछुड़ने का डर ।
    हिम्मत कर -
    खुशियाँ भर -
    मत डर -
    है ईश्वर ।।

    ReplyDelete
  2. अच्छी प्रेममयी रचना.....

    ReplyDelete
  3. हर कोई जब अपना लगे तो समझो कोई बहुत ही अपना बन गया है

    ReplyDelete
  4. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति सुषमा जी....
    मोहब्ब्त के इस डर में भी मज़ा है...........

    अनु

    ReplyDelete
  5. खो दूंगी कुछ मैं भी....
    सब कुछ बिखरा-बिखरा सा लगता है....
    यहाँ स्वत्वबोधक (possessive) गुणों की अधिकता लगता है .... !!
    न जाने क्यों हर कोई अपना-अपना सा लगता है......
    ना जाने क्यों डर सा लगता है...!!!

    ReplyDelete
  6. तलाश में हूँ मंजिल की,
    सफ़र पर तन्हा नही हूँ मैं...
    मेरे साथ चलता,
    तुम्हारा साया सा लगता है.....

    प्यार की सुंदर अनुभूति छाई है इस कविता में.

    ReplyDelete
  7. तलाश में हूँ मंजिल की,
    सफ़र पर तन्हा नही हूँ मैं...
    मेरे साथ चलता,
    तुम्हारा साया सा लगता है.
    beautiful lines with emotion and feelings .
    when you love someone the fear of loosing works.
    so so so nice lines.

    ReplyDelete
  8. सुंदर अभिव्यक्ति ...

    जब से तुम्हे माना है अपना..
    न जाने क्यों हर कोई अपना-अपना सा लगता है......
    ना जाने क्यों डर सा लगता है...!!!

    ReplyDelete
  9. कुछ खोने का डर है तो निश्चय कुछ पा लिया है...ये सेन्स ऑफ़ इनसेक्यूरिटी उसी की उपज है...खूब कही...

    ReplyDelete
    Replies
    1. kuchh paakar use khone ka darr.........ise har dil mahsoos karta hai..........lekin ehsaason ko shabdon me pirokar aisi rachna bunna!sundar!! badhai aapko.

      Delete
  10. कितनी अजीब सी बात है ... यह डर चलता है साथ साथ , शायद इस डर से ही हौसले मिलते हैं

    ReplyDelete
  11. मुड-मुड कर देखती हूँ तुमको,
    हर आहट पर यूँ ही रुक भी जाती हूँ....
    ये दिल भी कुछ दीवाना सा लगता है.....
    ना जाने क्यों डर सा लगता है...

    बहुत सुन्दर पंक्तियाँ !
    आभार ..

    ReplyDelete
  12. ये अपनापन और डर का समवेश ही थी असली जिंदगी हैं

    ReplyDelete
  13. कुछ पाना कुछ खोना यही जीवन है कहीं न कहीं ये डर सबमे होता है ।

    ReplyDelete
  14. जब वो साथ है तो डर काहे का ... कुछ खोने का ये कुछ और ... इस इनसिक्योरिटी कों बाखूबी दर्शाती है ये रचना ...

    ReplyDelete
  15. प्रभावशाली रचना.

    ReplyDelete
  16. प्रेम ऐसा ही होता है...कुछ खोने का डर भी और कुछ पाने की खुशी भी..बहुत सुंदर भाव, आभार!

    ReplyDelete
  17. जब से मिली हूँ तुमसे,
    जब से तुम्हे माना है अपना..
    न जाने क्यों हर कोई अपना-अपना सा लगता है......
    ना जाने क्यों डर सा लगता है.
    भावमयी प्रस्तुति

    ReplyDelete
  18. जिसे दिलो-जान से चाहो ...कहीं उसे खोने का डर सा बना तो रहता है ....!!!

    ReplyDelete
  19. यह् डर तो हमेशा साथ-साथ चलते हैं,हमारे.रचना...अच्छी लगी.

    ReplyDelete
  20. pyar ko abhvyakt karti post.

    ReplyDelete
  21. ये खो देने का डर है ... सुंदर रचना ...

    ReplyDelete
  22. बहुत ही बढ़िया।


    सादर

    ReplyDelete
  23. इक अजीब सा डर सा रहता है,क्या होगी ज़िंदगी तेरे बिना........

    ReplyDelete
  24. बहुत गहरे भावों को संजोया है...

    ReplyDelete
  25. पाकर खोना ना पाने से कहीं ज्यादा डरावना है ।

    ReplyDelete
  26. ACHHI KAVITA LIKHNE KA ACHHA PRAYAS. AAP KI YE LINE BAHUT HI ACHHI HAI-न जाने क्यों हर कोई अपना-अपना सा लगता है.
    UMADTE KHAYALAAT KO KAH JANE KI KLA ACHHI KAVITAON KO JANM DETI HAI..
    APNE BLOG PR AAP KA INTEZAR KARUNGA...SHAHJAHAN "LUTFI"

    ReplyDelete
  27. मंजिल पर अकेली नहीं मैं साथ तुम्हारा साया सा लगता हैं ....क्या बात |

    ReplyDelete
  28. बहुत ही सुन्दर भाव संयोजन है सुषमा जी..
    बहुत बेहतरीन रचना....

    ReplyDelete
  29. जिससे हम ज्यादा प्रेम करते हैं उसे खोने का डर हरदम साथ रहता है ...ये मनस्तिथि शायद हम सब के साथ है !

    well ur blog is so beautiful .........

    ReplyDelete
  30. किशोर मन का उद्वेलन है इस रचना में जहां अतिशय प्रेम होता है वहीँ खो जाने का डर भी रहता है ..
    मुड-मुड कर देखती हूँ तुमको,
    हर आहट पर यूँ ही रुक भी जाती हूँ....
    ये दिल भी कुछ दीवाना सा लगता है.....
    ना जाने क्यों डर सा लगता है...
    आपकी द्रुत टिपण्णी के लिए शुक्रिया .कृपया यहाँ भी पधारें -शनिवार, 28 अप्रैल 2012

    ईश्वर खो गया है...!

    http://veerubhai1947.blogspot.in/
    आरोग्य की खिड़की
    http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2012/04/blog-post_992.html

    महिलाओं में यौनानद शिखर की और ले जाने वाला G-spot मिला
    http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/

    ReplyDelete
  31. कुछ पाना, कुछ खोना, यही तो जीवन है।

    ReplyDelete
  32. यह डर नहीं लगना चाहिए....
    यह दुखद है ...
    बढ़िया रचना , आभार !

    ReplyDelete
  33. v nice ..
    जब से मिली हूँ तुमसे,
    जब से तुम्हे माना है अपना..
    न जाने क्यों हर कोई अपना-अपना सा लगता है......
    bahut accha likha aapne
    ..
    darte hue bhi larna chaahiye ...
    ruk jaana hi dar ki jeet hai..

    ReplyDelete