आज कल...
उनका हाथ थाम कर चलने लगे है..!
उनकी बांहो में गिरने
और संभलने लगे है....
एक वो जो साथ हो
तो ये रास्ता भी
मंजिल लगने लगे है...!
चँलू किसी भी राह पर
हर मोड़ पर वो मुझको मिलने लगे है ...!
अब मुस्किल नही कुछ भी
राहे सब आसाँ लग रही है....
बन कर हमसफ़र वो मेरे
साथ चलने लगे है ...!
फिर धड़कने हों गयी है तेज
दिन प्यार के चलने लगे है ...!
उनका हाथ थाम कर चलने लगे है..!
उनकी बांहो में गिरने
और संभलने लगे है....
एक वो जो साथ हो
तो ये रास्ता भी
मंजिल लगने लगे है...!
चँलू किसी भी राह पर
हर मोड़ पर वो मुझको मिलने लगे है ...!
अब मुस्किल नही कुछ भी
राहे सब आसाँ लग रही है....
बन कर हमसफ़र वो मेरे
साथ चलने लगे है ...!
फिर धड़कने हों गयी है तेज
दिन प्यार के चलने लगे है ...!
सुन्दर दिन ये प्यार के चलते रहे !
ReplyDeleteशुभकामनायें !
बहुत सुन्दर प्रेममय प्रस्तुति...
ReplyDeletevery fine and reasonable representation.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (11-02-2014) को "साथी व्यस्त हैं तो क्या हुआ?" (चर्चा मंच-1520) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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बसंतपंचमी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
sundar prastuti ....
ReplyDeleteकिसी ने इक रोज़े-पाक का नाम इश्के-हक़ीक़ी रखा..,
ReplyDeleteइश्के-मजाज़ी ने उसे मेट के सिर्फ़ हवस लिख दिया.....
इश्के-हक़ीक़ी = पाक मुहब्बत
इश्के-मजाज़ी = भोग वासना-युक्त प्रेम