आज कल ना जाने क्यों
सब कुछ खास लगता है ....!
चीजे तो वही है
मैं भी वही हूँ
पर इन सबका एक नया
अहसास लगता है....!.
आज कल मेरे जीने कि एक ख़ुशी है कि हर जर्रे में लग रही ज़िंदगी है....!
किसी के साथ पाँव जमी पर नही पड़ रहे है
किसी के ख्यालो में आसमान में उड रही हू मैं..!
मेरी साँसों में किसी कि साँसों कि
खुशबू मिलने लगी है.....
कि ज़िंदगी किसी के कदमो
के निशाँ पर
बेफिक्र चलने लगी है....!
फिर धड़कने हों गयी है तेज
दिन प्यार के चलने लगे है ...!
सब कुछ खास लगता है ....!
चीजे तो वही है
मैं भी वही हूँ
पर इन सबका एक नया
अहसास लगता है....!.
आज कल मेरे जीने कि एक ख़ुशी है कि हर जर्रे में लग रही ज़िंदगी है....!
किसी के साथ पाँव जमी पर नही पड़ रहे है
किसी के ख्यालो में आसमान में उड रही हू मैं..!
मेरी साँसों में किसी कि साँसों कि
खुशबू मिलने लगी है.....
कि ज़िंदगी किसी के कदमो
के निशाँ पर
बेफिक्र चलने लगी है....!
फिर धड़कने हों गयी है तेज
दिन प्यार के चलने लगे है ...!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (09-02-2014) को "तुमसे प्यार है... " (चर्चा मंच-1518) पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वसंत-काल की सभी मित्रों को कोटि कोटि मीठी मीठी वधाइयां !
ReplyDeleteआप की यह रचना सटीक ,सामयिक एवं रोचक व मार्मिक है !
प्यार के दिनों के खूबसूरत अहसास...
ReplyDeleteबहुत ही प्यारी रचना..
सुन्दर...
:-)
कि ज़िंदगी किसी के कदमो
ReplyDeleteके निशाँ पर
बेफिक्र चलने लगी है....!
बहुत खूब !
न जाने ये क्या हो गया...कि सब कुछ लागे नया-नया...
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