मौसम का रुख फिर बदलने लगा हैं..
तुम्हारी याद में दिन
गुजरते -गुजरते ...
शामे कुछ देर से ढलने लगी हैं ...!
किसी कि याद में राते गुजरने लगी हैं..
हवाओ में फिर हीर राँझा के किस्से..
सोनी महवाल कि बाते होने लगी है ...!
धड़कने तेज हो गयी है ..
दिन प्यार के चलने लगे हैं..!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज मंगलवार (04-02-2014) को कैसे मेरा हिन्दुस्तान लिखूँ...चर्चा अंक:1513 में "अद्यतन लिंक" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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बसंतपंचमी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
प्यार में ऐसा ही होता है. आपने दिल के भावो को शब्द दे दिया है.
ReplyDeleteप्यार भी शायद ठिठुर कर दुबक गया था :)
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteriderfreelance.blogspot.in
Nice
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति, माँ सरस्वती पूजा हार्दिक मंगलकामनाएँ !
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