कभी उगते सूरज को तुम्हारे साथ देखना चाहती हूँ......
तो कभी ढलती शाम को तुम संग गुजारना चाहती हूँ......
कभी रात का लम्बा सफ़र.......तुम्हारी गोद में सर रख कर,
चाँद को एकटक निहारते गुजारना चाहती हूँ.........
चाहती तो मैं यह भी हूँ....................
एक दिन हम आसमान के सारे तारो को गिन डाले........
ना जाने क्यों तुम्हारे साथ अब कुछ भी नामुमकिन सा नही लगता........!!!
आहुति
वाह ...बहुत प्रबल विश्वास दर्शाती रचना ...!!
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति ...
your poems i read daily......excellent are the expressions...good...pls keep it up
ReplyDeleteसमर्पण के साथ लिखी गयी सुन्दर रचना!
ReplyDeleteकभी उगते सूरज को तुम्हारे साथ देखना चाहती हूँ......
ReplyDeleteतो कभी ढलती शाम को तुम संग गुजारना चाहती हूँ......
कभी रात का लम्बा सफ़र.......तुम्हारी गोद में सर रख कर,
चाँद को एकटक निहारते गुजारना चाहती हूँ.........
गजब की अभिलाषा
प्यार का आठवां पायदान
ReplyDeleteचाह सुंदर है..चाह पूर्ण ही हो यह आग्रह नहीं...
ReplyDeletesundar...abhivyakti!
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल रविवार 10-फरवरी-13 को चर्चा मंच पर की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है.
ReplyDeletebhavnatmak prastuti.
ReplyDeletesundar bhavnatmk prastuti, sundar khato aur khataon ka silsila jari rakhiye
ReplyDeleteबहुत प्यारी रचना
ReplyDelete