कुछ तकलीफे हमको खामोश कर देती है...एक अजीब सी उदासी हर वक़्त रहती है,पता है कि अब इस दर्द के साथ ही जीना है,पर मन फिर भी चाहता है,वक़्त थोड़ा पीछे चला जाता,जो छूट रहा था हमारे हाथों से हम उसको रोक लेते,नही रोक पाते तो कुछ तो समेट लेते उसके बिना जीने की वजह ही बना लेते...पर नही होता है कुछ भी,ना हम कुछ बदल सकते है,ना ही दर्द को कम किया जा सकता है...बस शांत हो जाते है,और सब खत्म होते देखते रहते है...
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