कुछ हादसे जिंदगी में ऐसे भी होते है...
वो क्यों हुए ये समझने के लिए पूरी जिंदगी भी कम पड़ जाती है...
399.
कोई चीज भी मिलती नही मुकम्मल यहां..
खुशिया भी अधूरी ही आती है,...
400.
सब कुछ तारीखों में कहाँ सिमट पाता है....चाहे जितना समेटो, कुछ ना कुछ छूट जाता है....
401.
कुछ लम्हे कभी नही बदलते ...
बस वो ठहर जाते है...
बदलते है तो बस तारीखे और कलेंडर...l
402.
किसी खुशी को एक डर में जीना...
जानते है कैसे लगता है,
शायद बहुत कम लोग इस एहसास से गुजरे होंगे...
जहां पर हर पल ये डर होता है,वो खुशी न कब आप से दूर हो जाये...
एक मजाक सी जिंदगी बन जाती है...
जब हर लम्हा खो जाने के डर में हम वो खुशी जीते है..
403.
रिश्ते बनाना बहुत आसान होता है..
रिश्तों में हमेशा जान बनी रहे...
हमेशा सोने की तरह खरे रहे,इसके लिए....
इन रिश्तों के लिए तपना पड़ता है...कुछ लोग ऐसे भी देखे है हमने रिश्ते निभाने में तो बहुत पीछे रहते है,पर परवाह करने का ढोंग बहुत अच्छे से कर लेते है....ऐसे लोगो से सतर्क रहें,और सावधान रहें.....
404.
तुम्हे भेजी है लिफाफे में भर कर प्यार की गर्माहट...
यही है तुम्हारे लिए मेरी सर्दियों की चिट्ठीया.. .
405.
आ जाओ आज कुछ बाते चाय पर हो जाये,
दिसम्बर का महीना भी है...
गुजरा वक्त फिर रिवाइंड कर लिया जाए...
शिकायतें सारी जो पूरे साल तुम्हे मुझसे रहती है..
मैं रख लूंगी अपने पास,
तुम बस एक दफा चाय पर आ जाना...
406.
चल दिसम्बर तुम्हारा हाथ पकड़ कर बिठा लूं...
अभी तो गुजरे साल का तुझसे हिसाब बाकी है....
407.
कुछ ख्वाइशें ऐसी भी होती है,
जो चाहते तो है कि पूरी हो जाये,पर पूरी होने से भी डर लगता है...जिंदगी ऐसे भी मोड़ लाती है....
408.
कुदरत हमसे हर ख्वाइश की कीमत ले ही लेती है..
किसी ना किसी रूप में..
डर सा लगता है कुदरत से कुछ भी मांगने से,
ना जाने वो उस ख्वाइश की क्या कीमत लगा ले.....
कहते है ना मुकम्मल तो कुछ भी नही मिलता.. .
409.
कभी तुम्हारी बातो से बुनी थी,
जो कहानी...पुरी हो ना हो...
तुम्हारी मुस्कराहटों से,
पूरी जिंदगी हो जायेगी..
मेरी आँखों से शुरू तुम्हारी आँखों पर खत्म..
ये कहानी मेरे शब्दो में सदियों तक पढ़ी जायेगी..
410.
क्यों ना इस बार सफाई उन शिकायतों की जाए जो बेवजह कुछ रिश्तों पर भारी है....
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