Monday, 25 January 2021

कुछ बिखरी पंखुड़ियां.....!!! भाग-43

411.
कभी-कभी चीजे तो वही रहती है,
सिर्फ उनकी जगह बदल देने से भी नयापन आ जाता है...

412.
कुछ तुम्हारे किये वादे...
मैं पूरे कर रही हूँ...☺

413.
ना जाने क्यों मन बहुत बेचैन है कुछ खो देने का डर है,...कुछ पाना भी चाहती हूं,बहुत सिद्दत से,...पर कुछ चाहते गर पूरी भी हो जाये,तो उनके पूरे होने से डर लगता है...ये बहुत कम होता है,पर एक बार जीवन मे जरूर होता है...जब आप जो पाना चाहते है,पर पाना नही चाहते है...ये भी अजीब एक कशमकश रहती है...

414.
हादसे जब तक दूर से दिखते है तो सिर्फ तकलीफ होती है,पर जब खुद की जिंदगी में हादसे होते है,तो वो दर्द महसूस होने लगते हैं...तब पता चलता है,कि दुनिया की किसी भी डिक्शनरी में नही होते है वो शब्द जो हमे दिलासा दे सके..हम बैठ कर रो सकते है....और वक़्त के गुजरने का इंतजार करते है...
415.
कुछ तकलीफे हमको खामोश कर देती है...एक अजीब सी उदासी हर वक़्त रहती है,पता है कि अब इस दर्द के साथ ही जीना है,पर मन फिर भी चाहता है,वक़्त थोड़ा पीछे चला जाता,जो छूट रहा था हमारे हाथों से हम उसको रोक लेते,नही रोक पाते तो कुछ तो समेट लेते उसके बिना जीने की वजह ही बना लेते...पर नही होता है कुछ भी,ना हम कुछ बदल सकते है,ना ही दर्द को कम किया जा सकता है...बस शांत हो जाते है,और सब खत्म होते देखते रहते है...

416.
कुछ दर्द कभी भी बांटे नही जा सकते,ना ही उनके लिए कोई दिलासा होता है..
बस असहाय से हम उसके दर्द के साथ बैठ कर रो लेते है..

417.
पूरी जिंदगी खर्च हो गयी सिर्फ अच्छा बने रहने में...
आखिर में अच्छा हुआ कुछ नही...

418.
एक स्त्री चाहे कितना ही क्यों ना समर्पित हो जाये...
पर एक पुरुष उसे अपनी शर्तों पर ही साथ चाहता है...
पुरुष हमेशा उस स्त्री का विकल्प ढूंढ़ता रहता है...

419.
कुछ बारिशें बरसना तो चाहती है...
पर ना जाने किसके इंतजार में ठहरी हुई सी है....

420.
डर लगने लगा है तुम्हारी उम्मीदों पर खरे उतरने का वादा करने से,ना जाने क्यों खुद से उम्मीदे बहुत ज्यादा रही नही है...आत्मविश्वास हिल से गया है....गलत तो कुछ न हुआ है..पर सही भी कुछ नही है...डर लगता है कि क्या कुछ सही हो पायेगा,या जिंदगी यूँ ही गुजर जएँगी...सही और गलत को समझते-समझते.....

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