Monday, 25 January 2021

कुछ बिखरी पंखुड़ियां.....!!! भाग-44

421.
जिंदगी में हर दिन कुछ बदलने की उम्मीद लिए मैं फिर उठ जाती हूँ,शाम होते-होते फिर उसी जगह खुद को पाती हूँ,...एक उदासी  लिए दिन गुजरता है,जितना समेटती हूँ खुद को,उससे कहीं ज्यादा टूट कर बिखर जाती हूँ...

422.
रिश्तो को बचाने के लिए  बिना किसी गलती के भी हमे झुकना पड़ता है...
हम सही होते है,फिर भी माफी भी हमे मांगनी पड़ती है....ताकि रिश्ते मुस्कराते रहे....

423.
रिश्तो को कुछ इस तरह निभाया जाए....
हर रिश्ते के लिए दोस्त बन जाया जाए...

424.
पता नही मैं क्यों दिख नही पाती वो जो मेरे दिल मे होता है...रिश्तो के लिए वो प्यार जो हमेशा मेरे दिख में होता है,वो फिक्र जो मैं आने ही अंदर महसूस करती हूं...हर रिश्ते के किये मान-सम्मान,लाड़-प्यार सब होता है,पर नही बाहर आता है वैसे जैसे सब चाहते है...नही बोलना चाहती किसी को कुछ भी बुरा,समझना चाहती हूँ,सबको उनकी ही तरह,पर ना जाने क्यों सब कुछ होते हुए भी समझा नही पाती किसी को खुद को...और राह जाती हूँ अकेली...बस खुद में ही....

425.
कभी-कभी हम भी सोचते है,
तुम्हारे दोनो हाथो को थाम कर,
तुम्हारी आँखों मे झांकते हुए तुमसे से कहुँ, 
कि जिंदगी में जो  कमियां होंगी,
वो सभी मैं भर दूंगी..
तुम्हारे हिस्से का भी सारा प्यार,
तुम्हे ही दे दूँगी मैं...

426.
सावन ही शिव हो जाये,
शिव ही सावन हो जाये...शिव जो मिल जाये तो मेरा जीवन पावन हो जाये...

427.
हर खुलती गांठ के साथ...मैं तुमसे बंधती जा रही थी....

428.
कुछ बारिशें अपने साथ सब कुछ बहा ले जाती है...
इतना आसान नही होता हर किसी का दर्द समेटना..
बारिशें बरसो से आंखों में ठहरे आंसुओ को भी बहना सिखाती है...

429.
इक तरफ तो तुम्हारी यादो का मेला सा रहता है,
कभी-कभी तुम साथ भी होते हो,
तो भी मन मे खालीपन सा रहता है...

430.
अंधेरा भी इतना नही डराता... 
जितना कि तुम्हारा रूठ जाना....


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