क्यों ना अपने घुटनों पर बैठ कर,
मुझे अपने साथ जिंदगी के,
सफर पर चलने की फरमाइश करते,
क्यों ना तुम कोई खूबसूरत सी,
अंगूठी मेरी उँगली में पहना कर,
बांध लेते अपने एहसासों से...
क्यों ना तुम कुछ शब्द से सजा के,
कोई खत दे कर...
मुझसे प्यार का इकरार करते...
पर ऐसा तो कुछ भी नही किया तुमने,
आँखों ही आँखों में,
तुमने बाते दिल कि कह दी,
मैंने मान ली तुम्हारे साथ सफर पर,
चलने की फरमाइश...
मैं बंध गयी तुम्हारे एहसासों में,
मैंने पढ़ लिए तुम्हारी आँखों में,
इकरार के सारे खत....
मैंने पढ़ ली तुम्हारी ख़ामोशी भी,
पर तुम मेरे शब्द भी ना पढ़ पाये....
फिर वही गुलाबो की महक..
फिर वही माह-ए-फरवरी है...!!
Tuesday, 7 February 2017
फिर वही गुलाबो की महक.. फिर वही माह-ए-फरवरी है...!!
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आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 09-02-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2591 में दिया जाएग्या
ReplyDeleteधन्यवाद