चुम कर माथा तुम्हारा मैं ले लूँ,
सारी बलाये तुम्हारी,
बांध कर तुम्हारी कलाई प्यार इक धागा,
दे दूँ तुम्हे अपनी दुआएं सारी.....
वक़्क्त रुकता नही ना तुम्हारे लिए,
ना ही मेरे लिए..
क्यों ना कुछ देर ठहर जाये,
इक-दूजे के लिये...
कभी जब घबरा कर,
जो तुम थाम लोगे हथेलियां मेरी,
मैं महसूस कर लुंगी,
तुम्हारे मन की व्यथाएँ सारी..
कि फिर वक़्त मिले ना मिले,
चुम कर आँखे तुम्हारी,
भर दूँ तुम्हारी आँखों में,
आसमान की निहारिकायें सारी...
फिर वही गुलाबो की महक..
फिर वही माह-ए-फरवरी है... !!!
Sunday, 12 February 2017
फिर वही गुलाबो की महक.. फिर वही माह-ए-फरवरी है... !!!
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बहुत सुन्दर
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