मैं तुम्हारे जीवन को गुलाब करना चाहती थी,
कांटे सभी मैं चुन कर,
तुम्हे पंखुड़ियों में सहज कर,
रखना चाहती थी...
मैं सींचती रही,तुम्हारे जीवन के गुलाबो को,
अपने प्यार से...कि खुश्बु बरकरार रहे,
तुम्हारी मेरी सांसो में,
मैं तुमसे इतर कुछ भी नही चाहती थी...
मैं हर रोज कली गुलाब की,
फूल बन कर तुम्हारी बाहों में रहना चाहती थी...
फिर वही गुलाबो की महक..
फिर वही माह-ए-फरवरी है...!!!
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