Saturday 4 February 2017

फिर वही गुलाबो की महक.. फिर वही माह-ए-फरवरी है...!!!

वो सूरज के निकलने से शाम के ढलने तक,
हर पहर की तुमसे बाते करना...
साक्षी है वो चाँद,वो तारे,वो चांदनी..
हमारी वो कसमे,जीने-मरने के वादे करना....
हमने तो सीखा था इक-दूजे की आँखों में,
देख कर यकीन करना...
ना जाने तुमने कहाँ से सीख लिया,
इन्ही आँखों से छल करना....
वो सूरज वो शामें वो पहर,
आज भी ढलते है वैसे ही,
हमने सीख लिया है,
इनसे..इक-दूजे के लिए,
यूँ ही बेवजह तुम संग चलना....
फिर वही गुलाबो की महक..
फिर वही माह-ए-फरवरी है...!!!

No comments:

Post a Comment