तुम्हारे-मेरे बीच रिश्ता
कच्चे धागे से बंधा था,
मैंने अपने प्यार और समर्पण से
इसे पक्की मौली बना दिया,
तुम खींचते रहे कितना पर
मेरे हर सजदे से
मेरी प्रार्थना से
ये मजबूत होता गया.
तुम शायद
इसे कभी नहीं समझ पाओगे
क्योंकि तुमने दिल में रखे थे
रुई की फोहों से सपने
और मैं रखी था कपास के बीच
जिसके बीड़वे कल पौधे बनेंगे
और उस कपास से सूत काट काट कर
फिर नए रिश्तों की मजबूत बंधन बाँधे जायेंगे..
फिर वही गुलाबो की महक...
फिर वही माह-ए-फरवरी है...
NIce,
ReplyDelete