Sunday 5 February 2017

फिर वही गुलाबो की महक.. फिर वही माह-ए-फरवरी है...!!!

तुम्हारा यूँ हर रोज शाम को,
कॉफी पर मुझे बुलाना,
मैं जानती थी कि कहते नही हो,
पर तुम ये मुझसे सुनना चाहते हो,
कि तुमसे मिलना अच्छा लगता है....
और मैं भी हमेशा तुम्हारा,
ये गुरुर बना कर रखना चाहती थी,
तभी तो जब तुम पूछते थे,
क्या कर रही हो,
तो मैं कह देती थी कि बस अभी आती हूँ....
क्यों की तुम्हे मुझसे अपने लिए,
सुनना अच्छा लगता था,
और मुझे तुम्हारी आँखों में,
तुम्हारा सिर्फ और मेरा होने का गुरुर,
अच्छा लगता था....
फिर वही गुलाबो की महक..
फिर वही माह-ए-फरवरी है...!!!

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