मैं आज भी..
उस घाट पर जाती हूँ...
ऊपर से नीचे जाती हुई सीढ़ियों पर
किसी पर बैठ जाती हूँ...
सबसे नजरे बचा कर,
मैं उन सीढ़ियों से धीरे से...
पूछ लेती हूँ..
कि कही मेरे जाने के बाद,
तुम वहाँ आये तो नही थे...
घंटो उन सीढ़ियों पर बैठ कर,
मैं उस नदी को देखती रहती हूँ,
कि कभी तो..
उसमे हलचल होगी...
और मेरे सवालो के जवाब,
मुझे मिल जायेंगे....पर
ना उस नदी में,
कोई हलचल होती है...
ना ही सीढ़ियों से,
कोई जवाब मिलता है...
मैं मौन भारी मन से,
चली आती हूँ..
इस इन्तजार में...कि
कभी तो...
मेरे सवालो से टकरा कर,
ये सीढियाँ बोल उठेंगी..
कभी तो मेरे टूटने से पहले,
उस नदी का मौन टूटेगा....!!!
उस घाट पर जाती हूँ...
ऊपर से नीचे जाती हुई सीढ़ियों पर
किसी पर बैठ जाती हूँ...
सबसे नजरे बचा कर,
मैं उन सीढ़ियों से धीरे से...
पूछ लेती हूँ..
कि कही मेरे जाने के बाद,
तुम वहाँ आये तो नही थे...
घंटो उन सीढ़ियों पर बैठ कर,
मैं उस नदी को देखती रहती हूँ,
कि कभी तो..
उसमे हलचल होगी...
और मेरे सवालो के जवाब,
मुझे मिल जायेंगे....पर
ना उस नदी में,
कोई हलचल होती है...
ना ही सीढ़ियों से,
कोई जवाब मिलता है...
मैं मौन भारी मन से,
चली आती हूँ..
इस इन्तजार में...कि
कभी तो...
मेरे सवालो से टकरा कर,
ये सीढियाँ बोल उठेंगी..
कभी तो मेरे टूटने से पहले,
उस नदी का मौन टूटेगा....!!!
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बृहस्पतिवार 23 जुलाई 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी ...बेह्तरीन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुती का लिंक 23 - 07 - 2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2045 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
बहुत खूब आहुति जी
ReplyDeletepyare bhav......
ReplyDeletewah shushma ji.....bilkul nayi sooch liye hue....sundar rachna
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ReplyDeleteविश्वास बना रहे तो पत्थर भी बोल उठते हैं। .
बहुत सुन्दर जज्बात
wah ! naye andaz mey sundar prastuti
ReplyDeleteबहुत खूब! सुदर भाव
ReplyDeletegazab ki prastuti ...
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