Tuesday 21 July 2015

उस घाट पर जाती हूँ...!!!

मैं आज भी..
उस घाट पर जाती हूँ...
ऊपर से नीचे जाती हुई सीढ़ियों पर
किसी पर बैठ जाती हूँ...
सबसे नजरे बचा कर,
मैं उन सीढ़ियों से धीरे से...
पूछ लेती हूँ..
कि कही मेरे जाने के बाद,
तुम वहाँ आये तो नही थे...
घंटो उन सीढ़ियों पर बैठ कर,
मैं उस नदी को देखती रहती हूँ,
कि कभी तो..
उसमे हलचल होगी...
और मेरे सवालो के जवाब,
मुझे मिल जायेंगे....पर
ना उस नदी में,
कोई हलचल होती है...
ना ही सीढ़ियों से,
कोई जवाब  मिलता है...
मैं मौन भारी मन से,
चली आती हूँ..
इस इन्तजार में...कि
कभी तो...
मेरे सवालो से टकरा कर,
ये सीढियाँ बोल उठेंगी..
कभी तो मेरे टूटने से पहले,
उस नदी का मौन टूटेगा....!!!

10 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बृहस्पतिवार 23 जुलाई 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  2. बहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी ...बेह्तरीन अभिव्यक्ति

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  3. आपकी इस प्रस्तुती का लिंक 23 - 07 - 2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2045 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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  4. बहुत खूब आहुति जी

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  5. wah shushma ji.....bilkul nayi sooch liye hue....sundar rachna

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  6. विश्वास बना रहे तो पत्थर भी बोल उठते हैं। .
    बहुत सुन्दर जज्बात

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  7. wah ! naye andaz mey sundar prastuti

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  8. बहुत खूब! सुदर भाव

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