Thursday, 23 July 2015

तुम्हारे नाम लिखे सारे ख़त....!!!

तुम्हारे नाम लिखे सारे ख़त,
मैं आज भी दराज से,
निकालने में डरती हूँ..
मैं खो ना जाऊं...
कही उनके लब्जों में,
अनदेखा करके...मैं आज भी,
उस अलमारी के पास,
से गुज़रती हूँ...
तुम्हारे नाम लिखे सारे ख़त....
हाँ कई बार आया है,
ये ख्याल जहन में,
कि निकाला है जिस तरह से,
तुम्हे जिन्दगी से..
इन खतों को क्यों नही,
निकाल फेकती हूँ...
हाथ जब भी बढाती हूँ,...
कर नही पाती हूँ..
तुम्हारे खतो की खुशबू से,
जैसे मेरी साँसे चलती है...
तुम्हारे नाम लिखे सारे ख़त...
कई बार सोचती हूँ..
इक बार पढ़ लूँ...
तुम्हारे खतो को....
इक बार जी लूँ......
तुम्हारे लब्जों को..
डरती हूँ कि......
जो इस बार तुम्हे पढ़ लिया,
तो ना फिर...
तुम्हे छोड़ पाऊँगी...
इक बार जो मुड़ कर देखा,
जो तुम्हे...
तो फिर ना आगे बढ़ पाउंगी...
अनदेखा करके मैं,
आज भी अलमारी के,
पास से गुजरती हूँ...
तुम्हारे नाम लिखे सारे ख़त....

2 comments:

  1. waah ..samvednaaon se bharpoor ......

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (25-07-2015) को "भोर हो गई ..." {चर्चा अंक-2047} पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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