Saturday 25 July 2015

तुम्हारे साथ तारो को गिनना....!!!

छत पर लेटे-लेटे तारे गिनने की
नाकाम कोशिश कर रही थी...
शर्त लगी थी खुद से,
क्या मैं तुम्हारे बिना तारे...
नही गिन सकती हूँ...
क्यों नही कर सकती हूँ..
मैं करके रहूंगी....
पर तुम नही तो...
जैसे गिनतिया ही भूल गयी हूँ...
जहाँ से शुरु करती हूँ..
वही फिर वापस आ जाती हूँ...
तुम नही हो तो...
ये तारे भी मेरा साथ..
नही दे रहे है..
बादलों में छुप कर,
आँख मिचौली खेल रहे है....
तुम नही हो तो चाँद भी...
रूठ कर छिप गया है कही...
सोचती हूँ कि इस बार...
जब चाँद से बात करुँगी,
तो तुम्हारी सारी,
शिकायते करुँगी...
पर देखो ना..
चाँद भी मेरे शिकायते नही,
सुनना चाहता है...
ये चाँद ये तारे कभी,
जो मेरे हुआ करते थे....
सभी तुम्हारे हो गये है...
तुम नही हो तो,
मुझसे बाते भी नही करते है...
सच ही मैं खुद से लगी,
शर्त हार  गयी हूँ...
मेरा हारना ही,
मुझे मेरी जीत लग रहा है...
सच्ची ये चाँद..
ये तारे तुम्हारे साथ ही,
अच्छे लगते है...
और यकीनन मैं भी,
इन्हें तुम्हारे साथ ही..
अच्छी लगती हूँ....
नामुमकिन नही लगता,
तुम्हारे साथ तारो को गिनना....!!!

4 comments:

  1. Hey there! Do you know if they make any plugins to
    help with Search Engine Optimization? I'm trying to get my blog to rank for soome targeted keywords but I'm not seeing very good results.
    If you know of any please share. Thank you!

    Here is my web-site website ()

    ReplyDelete
  2. सुन्दर प्रस्तुति

    ReplyDelete
  3. अच्छी लगी यह कविता। मन के गहरे भाव को सामने किया गया है, ऐसा लगता है।

    ReplyDelete