Wednesday 15 July 2015

वो किताब...!!!

आखिर मैंने ढूंढ ही ली...
वो किताब,
जिसको तुमसे मांगने,
और तुम्हारे देने..में..
इक रिश्ता बनाया था...
हमारे बीच...
वक़्त की गहराइयों में,
कही खो गयी थी...
वक़्त की धुल में...
इस कदर लिपटी की..
पहचाना भी मुश्किल था...
आखिर मैंने ढूंढ ही ली..
वो किताब...
आज भी जब मैंने..
वो किताब खोली,
तो वही जानी-पहचानी..
खुशबू बसी थी..
उसके हर पन्ने पर...
आज भी जब उस पर...
लिखे शब्दों को,
मेरी उँगलियों ने छुआ तो,
किसी की उँगलियों का,
एहसास करा गयी..
वो किताब...
आखिर मैंने ढूंढ ही ली..
वो किताब...
आज भी जब मेरे होंटों ने,
उस पर लिखे शब्दों को पढ़ा...
तो जैसे कोई धुन सुना गयी..
वो किताब...
आखिर मैंने ढूंढ ही ली..
वो किताब...
जिसमें कही छिपा कर रखा,
हुआ सूखा गुलाब,
किसी की बेवजह बातो का,
जिक्र करता है...
किताब का पलटता हर पन्ना,
किसी के साथ गुजरी हुई,
शामों का जिक्र करता है...
फिर किसी की याद दिला गयी..
वो किताब...
आखिर मैंने ढूंढ ही ली...
वो किताब...
जिसमे मेरी सांसो की,
चलने की वजह थी...
जिसमें मेरी धड़कनो के,
धड़कने का सबब था...
आखिर मैंने ढूंढ ही ली...
वो किताब...!!!

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