Sunday, 12 July 2015

डायरी में बंद सपने मेरे......!!!

फिर आज किताबो के ढेर में..
इक पुरानी डायरी कही दबी हुई मिली....
याद नही कि कब लिखी थी,
हाँ शौक तो था,
मुझे डायरी लिखने का...
हर दिन की बाते..
मैं इस डायरी में लिखा करती थी....
इक पन्ना पलटा..
तो टेड़े मेढ़े अक्षरों में...
मैंने अपना नाम लिखा था...
हँसी आयी कि,
कितनी खराब लिखावट थी मेरी...
इक और पन्ना पलटा तो..
कुछ नाराजगी से भरी से,
कुछ लाइन लिखी थी..
लिखी थी कि...
माँ मुझसे प्यार नही करती,
हर रोज मुझे स्कूल भेज देती है...
कितनी नादान थी मैं...कि 
वही बचपन की मुस्कान मेरे होटों पर आ गयी....
इक और पन्ना पलटती हूँ...
तो लिखा था कि...
मैं बड़ी हो कर डॉक्टर बनूगी...
पढ़ कर थोड़ी उदास हो गयी मैं...
ये सपना तो जैसे भूल गयी थी....मैं ...
और डायरी में लिख कर,
दब कर रह गया था....
मैंने झट से..
वो डायरी बंद कर के रख दी...
इस डर से कि...
ना जाने कितने ही सपने बंद थे,
इस डायरी में...
फिर उस डायरी को,
उसी ढेर में कही दबा कर रख दिया..
मुस्कराते हुए खुद से कहते हुए कि
डायरी में बंद सपने मेरे......!!!

3 comments:

  1. शुभ संध्या दीदी
    गर ये सपना सच हो जाता
    तो....
    कलम तो होती ही एक हाथ में
    और मरीज की नब्ज भी होताी
    दूसरे हांथ में....

    सादर

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  2. Khyal bikharte hai...sapne bikharte hai..fir bhi hum kuchh na kuchh samet hi lete hai...

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  3. यूँ ही निकल जाती हैं यादों के पिटारे कभी-कभी दबी डायरियों से ...
    सुन्दर !

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