Tuesday, 21 July 2015

इस बार जब सावन आये.....

सुनों...इस बार..
जब सावन आये...
तब तुम मुझे,
झूला-झुला देना ....
डरती हूँ गिरने से मैं..
ज्यादा तेज नही,
धीरे-धीरे झुला देना...
सुनों...इस बार..
जब मुझे नींद ना आये...
तो तुम मुझे,
थपकी दे कर सुला देना...
गर फिर भी..
मुझे नींद ना आये..
तो फिर कोई धुन,
गुनगुना देना...
सुनो...इस बार..
ग़र मैं रूठ जाऊं..
तो मुझे मना लेना...
फिर ग़र मैं ना मानूं..
तो मुस्करा कर,
गले से लगा लेना...
सुनों...इस बार...
ग़र कही मैं
बिखर जाऊं..
तो तुम मुझे सम्हाल लेना..
फिर भी गर ना चल पाऊं...
ऊँगली पकड़ मेरी,
मुझे चलना सीखा देना....
सुनो...इस बार...
ग़र मेरी आखों में,
आसूं आये..
तुम उनको रोक लेना..
फिर गर ना रुके आँसू....
अपने होटों की छुअन,
मेरी पलकों पर सजा देना...
सुनों...इस बार..
जब तुम,
मुझसे दूर जाना..
मुझे ख़त लिखना...
सीखा देना...
फिर ग़र कभी..
ख़त तुम्हे जब ना मिले मेरा..
तो तुम बिन जीना मुश्किल है...
सब कुछ छोड़ कर चले आना...
सुनों...इस बार...
जब सावन आये.....

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