Thursday 9 July 2015

कुछ बिखरी पंखुड़ियां.....!!! भाग-18

156.
मैं खुद को खो दूँ कि इससे पहले तुम मुझे ढूंढ लेना......
157.
क्यों....मैंने कभी कोई सवाल नही किया....
कि तुम्हारे साथ गुजरे लम्हों की उम्र कितनी है
158.
अब जब तुम मुझसे कुछ सुनना चाहते हो....
अफ़सोस...अब मेरे पास कहने को कुछ भी नही है....
159.
कुछ तो था तुम्हारी आँखों में...
कि तुम्हारा मुझे छोड़ कर वो जाते हुए...
वो लम्हा आज तक मेरी आँखों ठहरा हुआ है...
160.
मेरे शब्दों ने तुम्हारी खामोशिया तोड़ी है...
हर बार सवाल तुम्हारी आँखों ने किये है...
हर जवाब में मेरी पंक्तिया बोली है... 
161.
चलो तुम्हे ढूंढते है आज.....
तुम्हारा पता हर गली...
हर राह से पूछते है आज...
162.
जिधर भी देखती हूँ...
मुझे देखती तुम्हारी वो दोनों.. 
आँखे ही दिखायी देती है....
163.
मैं ना तुम्हे खोना नही चाहती...
इसलिये नही की तुम बहुत अच्छे हो...
बल्कि तुम जैसे भी हो,जो भी हो...
मुझे अच्छे लगते हो....
164.
तुम मुझे जीतने की,
इक कोशिश तो करो...
मैं तो खुद को पहले ही,
हार चुकी हूँ....
165.
अक्सर जब सफ़र में होती हूँ...
तो न चाह कर भी जिन्दगी के suffer बारे में सोचती हूँ.. 

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (11-07-2015) को "वक्त बचा है कम, कुछ बोल लेना चाहिए" (चर्चा अंक-2033) (चर्चा अंक- 2033) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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  2. बहुत सुन्दर अभिव्यक्तियाँ !

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