Friday 19 May 2017

कुछ बिखरी पंखुड़ियां.....!!! भाग-40

371.
इक लम्हा तेरी नजरो में मैं ठहर जाऊं,
इक लम्हा मेरी साँसों से गुजर जाये....
बस इन्ही दो लम्हो में,
हमारी जिंदगी गुजर जाये...

372.
फिर इक बार.....
मैं शब्दों को गढ़ लूँ,
कि शब्द अब मिलते नही मुझे...
तुम जो पढ़ लो इक बार,
तो....मैं फिर कविता बन जाऊं..

373.
मुझे सुकून है कि मैंने हर मुमकिन कोशिश की,
तुम्हे रोकने की....तुम पछताओगे कि,
तुम ठहरे क्यों नही...

374.
तुम क्या समझोगे प्यार क्या होता है,
जहां दिल की चलती है,
वहां तुम दिमाग चलाते हो....

375.
मेरा तुम्हारे साथ होना मेरी मर्जी है,
गर तुमने मेरी मज़बूरी समझ लिया
ये तुम्हारी ग़लतफ़हमी है....

376.
कभी मैं प्यार के लिये लिखा करती थी,
अब लिखने के लिये प्यार लिखती हूँ...

377.
किसी का साथ पसंद है तो फिर,
ये नही देखा जाता की साथ कितनी देर का है.....
देखा तो बस इतना जाता है,
की दो पल भी अगर साथ है....
तो मुकम्मल साथ रहे......!!

378.
जब कभी जो कही मैं डर जाऊं...
या हार के टूटने लगूं..तुम मेरा हाथ अपने हाथो में मजबूती से पकड़ कर रखना...यक़ीनन मैं टूट भी गयी तो..कभी बिखारुंगी नही....

379.
कविता मैं लिख दूंगी कहानी तुम लिख लेना..
मैं तुम्हारे लम्हो को जी लुंगी,
तुम मेरी जिंदगी जी लेना...

380.
मैं तो पूरी दुनिया को शब्दों में बांध लुंगी,
अगर तुम मुझे पढ़ने की ठान लो....

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