Friday 19 May 2017

कुछ बिखरी पंखुड़ियां.....!!! भाग-34

311.
मैंने सम्हाल रखे है,
तुम्हारे कुछ लम्हे,
कभी जरुरत हो..
तो वापस ले लेना...

312.
वो मेरे इतने करीब से हो कर गुजरा है...
उसके जाने के बाद भी...
मेरे आस-पास..इक अरसे तक,
उसका एहसास बिखरा रहा...

313.
सभी रंग तुम्हारे है...
मैं तो हर रंग में तुम्हारी हूँ....

314.
मेरे नाम का गुलाल,अबीर..
तुम भी अपने गालो पर लगा लेना,
कोई पूछे तो झिझकना नही,
नाम मेरा बता देना....

315.
इक बार जो तुम्हारे प्यार का रंग चढ़ा,
फिर और कोई रंग ना चढ़ सका...

316.
इक स्त्री तुम्हारी आँखों में,
अपने लिये सम्मान और होठो पर,
मुस्कान ही तो चाहती है...

317.
प्यार के लिये मैंने सिर्फ प्यार ही शर्त रखी है....

318.
जहाँ प्यार होता है...
वहां नारजगी नही होती है.....
सिर्फ उम्मीद होती....

319.
मैं कैसे कह दूँ...कि उसने मुझे भुला दिया...
कि उसकी आखों में प्यार आज भी दिखता है........

320.
फिर उँगलियों के पोरो में,
धागों को उलझा रही हूँ...
कि सुलझा रही हूँ....
उलझे तो तुम्हारे ख्याल हो,
सुलझे तो तुम्हारे जवाब हो.....

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