Friday, 19 May 2017

कुछ बिखरी पंखुड़ियां.....!!! भाग-38

351.
लगता है की जीवन यही है.....
बस यही है.......एक सपना...और
एक डर.....उस सपने के टूटने का.......

352.
चाहती हूँ...कि मैं इस कदर तुम्हारे ख्यालों में आऊ...
तुम पढ़ो किसी भी किताब को..
मैं हर अक्षर में उभर जाऊं..

353.
किसी की गलतियां बता कर,
उसे छोड़ देना बहुत आसान है....
पर उन गलतियों की वजह जान कर,
उसे माफ़ करना इतना भी मुशकिल नही है...

354.
तुम रहने दो मेरे मन को बहलाने को,
तुम बिन ही....
मैंने मन को मना लिया है....

355.
उसके हाथो की गिरिफ्त ढीली पड़ी तो महसूस हुआ...
यही वो जगह है..जहाँ रास्ता बदलना है...

356.
गुस्ताखियां भी आपकी
नाराजगिया भी आपकी...
गज़ब अंदाज़ है....
आपकी चाहत के........

357.
मैं खुबसूरत हूँ या नही.. ये नही जानती....यक़ीनन वो आखेँ बहुत खुबसूरत है....जिन्हें मैं खुबसूरत लगती हूँ....

358.
इन लम्हो को कैद करके,कुछ तो आसान कर ली है जिंदगी.....!!!

359.
इक चोट से कांच कि तरह टूट कर बिखरी है जिंदगी....
जब भी टुकड़ो को समेट कर जोड़ने कि कोशिश की,
इक और चोट देती है जिंदगी.....

360.
तुम्हारी मुस्कराहटे....
मेरी दम तोड़ती जिन्दगी में.....
साँसों का काम करती है....

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