Friday 19 May 2017

कुछ बिखरी पंखुड़ियां.....!!! भाग-37

341.
बहुत डर लगता है जिस बात के लिए,
तुमसे दूर चली आयी थी,
वही बात फिर ना हो जाये....
तुम मिलो और मुस्करा दो,
और मुझे फिर से तुमसे प्यार ना जाये.

342.
जब नजदीकियाँ अखरने लगे,
तो नजदीकियाँ बनी रहे....
इसलिए दूरियां बढ़ा लेनी चाइये....

343.
जब से तुमने मेरा थामा है...
मैं तेज और तेज चलने लगी हूँ...
तारीखों में तो साल आज गुजर रहा है..
मेरी जिन्दगी में हर इक पल में,
सदियां गुजर गयी है....

344.
क्यों ना फिर तुम्हारा हाथ थाम कर इस धुंध में खो जाऊं.....

345.
कही कोई वक़्त से लम्हे,
चुरा कर तुम्हे दे दूंगी,
तुम सिर्फ मुस्करा देना..
मैं तुमसे कानो में कुछ कह दूंगी....

346.
अपनी उदासियों से भागती रही हूँ मैं.....
एक ख्वाब कि तलाश में....
कितनी रातो से जागती रही हूँ मैं....!!

347.
तुम्हारे लिये जो सिर्फ जिन्दगी के कुछ पल थे....
मेरे लिये उन पलों में ही जिन्दगी थी..

348.
मैं तब किसी रियासत की रानी,
जैसा महसूस करती हूँ,
जब तुम कहते हो की,
मैं तुम्हारे दिल में राज करती हूँ...

349.
क्यों कोई तुमने प्यार का नाम नही दिया मुझे,
क्या मैं तुम्हे इतनी प्यारी ना लगी....

350.
ना जाने क्यों तुम हो फिर भी कुछ कमी सी है,
जिंदगी तो तुम्हारे साथ ही है....
ना जाने क्यों लगता है जिंदगी छली सी है...

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