Friday 19 May 2017

कुछ बिखरी पंखुड़ियां.....!!! भाग-36

331.
मैं जब भी उदास दिखूं,
तुम कुछ ना करना,
सिर्फ थोड़ा सा मुस्करा देना....

332.
सभी मंजिले तुम्हारी ही है...
मुझे तो सिर्फ तुमको
उन तक पहुँचाने रास्ते बनाने है....

333.
कुछ 'लकीरे' किस्मत से चुराई है....तुम्हारे लिए...
तुम कहो तो तुम्हारी हथेलियों पर....सजा दूँ .....

334.
तुम्हे खूब आता है.....
मुझे अपनी बातो में बहला लेना......
तुम्हे खूब आता है.......
बिना कुछ कहे.... मुझको मना लेना....

335.
मैं लेखिका तो नही हूँ,
हाँ पर लिख देती हूँ वो सब,
जो मैं तुमसे कह नही पाती हूँ...

336.
मैंने अपने पर काट लिए,क्यों की
मैं तुम्हे आसमान की उच्चाईयां,
छूते देखना चाहती हूँ....

337.
अब मैंने भी मन को मारना सीख लिया है....
अब मैं भी मन के की मन नही सुनती हूँ,
मन को समझाना सीख लिया है.....

338.
कुछ भी तो गुजरता नही....
दिल के किसी कोने में ठहर जाता है...
याद बनकर..
क्या खोया ? क्या पाया ?...
इस गुजरे वक़्त में आ गया....
नया साल एक जवाब है....
सामने सवाल बनकर......

339.
कुछ नही कहूँगी,सिर्फ तुम्हारे साथ जब होती हूँ,
हर पल नया,हर तारीख नयी,हर साल नया होता है....

340.
कुछ कहूँगी फिर भी कम ही होगा,
तुम्हे देख कर ग़र मुस्करा,
कर आँखे झुका लूँ,
तो समझ लेना...
जो मैंने कहा नही...

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