Friday 19 May 2017

कुछ बिखरी पंखुड़ियां.....!!! भाग-35

321.
आओ तुम्हे पढ़ लूँ इस बार जी भर कर मैं,
कि कभी अधूरा सा ना बाकी रहे..

322.
मेरी पंक्तियों को पढ़ कर,
जितना आसान था तुम्हारे लिय,
खामोश होना,उतना ही मुश्किल था,
मेरे लिये, तुम्हे लिखना....

323.
प्यार इक भगवान् की पूजा करने जैसा ही पवित्र है,
और ये एहसास कभी यूँ अचानक तुम्हारी आँखों में दिख जाता है...

324.
मेरे हाथो को अपने हाथो में थाम लो...
तो फिर किसी वादे की मुझे जरुरत नही......

325.
जिंदगी में हारते नही है,हमको हरा दिया जाता है,
और हराता वही है,जिसके लिए हम जितना चाहते है...

326.
नही चाहती कि तुम मेरे लिये आसमान के,
तारे तोड़ कर लाओ,शर्त ये है कि
तुम थाम लो हाथ मेरा,
तारे मैं खुद तोड़ लाऊंगी..

327.
इक स्त्री जब प्यार में होती है तो,
वो अपने प्यार के लिए.
जब रोटी भी सेंकती है,
और अगर वो थोड़ी सख्त हो जाये तो,
वो हटा देती है,दूसरी बना कर देती है,
क्यों की वो मानती हैं कि,
जिंदगी सख्तियां सिर्फ वो सह सकती है...
अपने प्यार को तो सिर्फ प्यार ही देना चाहती है...
फिर ना जाने कैसे,
पुरुष उसके लिए इतने सख्त फैसले ले लेते है..

328.
मुझे अब कविता में जिंदगी नही ढूंढनी,
जिंदगी को कविता बनाना है..

329.
गर ये आँखे जागती रहेंगी,
तो इन्हें तुम्हारा इन्तजार रहेगा...
चलो इन्हें कुछ और सुझाया जाये,
झूठ ही कह कर कि,
तुम सपनो में आओगे,
इन्हें सुलाया जाये....

330.
प्यार न करने से अच्छा है.....?
किसी से प्यार करके .......
उसके प्यार में हार जाना है..

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