Friday 19 May 2017

कुछ बिखरी पंखुड़ियां.....!!! भाग-39

361.
तुम्हारे हर झूठ को मैं सच मान लेती हूँ,
झूठ के पीछे का भी सच जान लेती हूँ..
.जब तुम सोचते हो कि तुमने मुझे झूठ से बहला दिया,
उस पल मैं तुम्हारे लिए सिर्फ तुम्हारे लिए....
खुद को पागल मान लेती हूँ...

362.
हर बार यूँ ही मुस्करा कर मिली हूँ....तुमसे,
डर था कही.....तुम चेहरे पर उदासी ना पढ़ लो...

363.
जब तुम पढ़ लेते हो मुझको,
मैं शब्दो से निकल कर,सज जाती हूँ तुम्हारे होठो पर....

364.
नही याद की उसके साथ पी थी,
चाय और कॉफ़ी का स्वाद क्या था...
सिर्फ ये याद रह गया....
कि उस शख्स की आखों में क्या-क्या था.

365.
मैं चाहती हूँ इक चांदनी रात,
जो सिर्फ मेरी और तुम्हारी हो...
हो चांदनी कुछ नाराज चाँद से,
उस रात चांदनी सिर्फ हमारी हो..

366.
कितना कुछ हो जाता है,दुनिया में यूँ ही बेवजह....
फिर तुम्हे मेरा बनने में क्यों चाइये कोई वजह...

367.
ढलती शामे,चाँद,तारे,राते,चाँदनी..
साँसे,अहसास,दिल,धड़कन...
सौं बातों का इक ही मतलब ...
सिर्फ तुम...और तुम ही तुम..

368.
तेरी बातो से मेरी..
हर इक रचना रच जाती है...
कविता तो मैं लिखती हूँ...
कविता जैसी बाते..
तुमको आती है...

369.
इक पूरी जिंदगी गुजार दी हमने,
इक अच्छी जिंदगी,
जीने की तैयारी में......

370.
रात भर दिये की रौशनी लिये,
तुम्हारी राहो में तुम्हारी राह तकती रही...
ना दिये को बुझने दिया,
बाती संग मैं भी जलती रही...

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