Monday, 7 December 2015

मुझमें तुम्हे ही पायेगा....!!!

अब तो मुझे जो भी देखेगा,
मुझमे तुम्हे ही पायेगा...
मेरी मांग के सिंदूर में हो तुम...
मेरे माथे की बिंदियां में हो तुम..
मेरी चूड़ियों की खनक में हो तुम...
मेरी पयाल की झंकार में हो तुम..
अब कहाँ....
मेरा प्यार जग से छिप पायेगा..
अब तो मुझे जो भी देखेगा..
मुझमें तुम्हे ही पायेगा....
अभी तक जो मेरी झुकी पलकों था,
जो मेरे होंठो की..
छिपी सी मुस्कान में था,
वो चेहरा मेरी आँखों में,
सभी को दिख जायेगा..
अब कहाँ....
मेरा प्यार जग से छिप पायेगा..
अब तो मुझे जो भी देखेगा..
मुझमें तुम्हे ही पायेगा....
अभी तक जो...
मेरी कवितायों में था कही,
जो छिपा था...मेरी गुनगुनाती धुनों में,
वो गीत अब लब्ज़ों में...
सभी के लबो पर गुनगुनाया जायेगा..
अब कहाँ....
मेरे प्यार जग से छिप पायेगा..
अब तो मुझे जो भी देखेगा..
मुझमें तुम्हे ही पायेगा....!!!

3 comments:

  1. सुन्दर प्रेम पगी रचना...

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  2. एक दूजे के हो जाने पर पहचान भी एक दूजे की हो जाती है.. बहुत सुन्दर

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