कितना कुछ लिखा....पढ़ा है...
मैंने इस साल में.......
कभी तुम्हारी परछाई बनी रही,
कभी देर तक बैठ कर तुमसे बाते की,
कभी-कभी तो...
मैं तुम्हारी जिंदगी में...
कही थी ही नही,
कभी इजहार में,
तुम्हे ढेरों खत लिखे,.
तो कभी आसान नही लगा...
तुमको लिखना....
कभी तुम्हारी उपलब्धियां,
मैं बनती रही,
तो कभी तुम्हारी मुस्कराहटों को,
लिखती रही....
तो कभी तुम्हारे इंतजार में,
ख़त लिखती रही...
कभी तुम में सिमटती रही जिंदगी,
कभी अपना लिखा तुमको सुनाती रही,
कभी शब्द ही नही मिले,
कुछ कहने को,...
तो कभी शिकायते बहुत हो गयी तुमसे,
कभी इक शाम,इक साथ तुम्हे देती रही,
तो कभी तुम्हारी मजबूरिया समझती रही,
कभी सागर का खारापन चखती रही,
तो कभी साथ तुम्हारे तारों को गिनती रही,
कभी उसी घाट पर जा कर,
तुम्हे ख़त लिखती रही,
कभी सावन में भीगते हुए,
तुम्हे दिल की सारी बाते कहती रही,
कभी तुम्हारी राधा बनी,
कभी कोई डायरी,
तो कभी तुम्हारे लिये किताब बनती रही,
कभी तुम ही तुम थे,
तुम्हारी ही इबादत करती रही,
तुम्हारे लिये श्रृंगार करती रही,
तो कभी तुम्हारे साथ,
उन दो लम्हों में उलझी रही,
कभी उसी खामोश सी शाम में,
तुम्हारा इंतजार करती रही,
तो कभी सुकून की तलाश करती रही,
कभी प्रेम को अपने
मंदिर सा कहती रही,
तो कभी बेचैन हो तुमको ढूंढती रही,
कभी तुमसे मिल कर,
पिया सी होती रही,
कभी तुममे कुछ नया ढूंढ़ कर,
हर बार कुछ लिखती रही,
कभी इक दिन दे कर,
फिर से अपने प्यार को जिन्दा करती रही....
कभी उसी चाँद की रात के लिये,
जिंदगी से इक दिन मांगती रही,
कभी तुम्हारे हर सवाल का जवाब,
मैं बनती रही,
तो कभी मैं अग्नि परीक्षा देती रही,
कभी तुम्हारी देहरी से,
तुम्हे बिना कुछ सुनाये लौटती रही,
तो कभी पहरो खिड़की से,
चाँद को देखती रही..
कभी तुम जैसी बनती रही,
तो कभी यूँ ही बेतरतीब ख्यालो को,
यूँ लिखती रही.....
कितना कुछ लिखा....पढ़ा है...
मैंने इस साल में.......
मैं इस साल तुम्हे,
हर सांस में तुम्हे जीती रही...!!!
मैंने इस साल में.......
कभी तुम्हारी परछाई बनी रही,
कभी देर तक बैठ कर तुमसे बाते की,
कभी-कभी तो...
मैं तुम्हारी जिंदगी में...
कही थी ही नही,
कभी इजहार में,
तुम्हे ढेरों खत लिखे,.
तो कभी आसान नही लगा...
तुमको लिखना....
कभी तुम्हारी उपलब्धियां,
मैं बनती रही,
तो कभी तुम्हारी मुस्कराहटों को,
लिखती रही....
तो कभी तुम्हारे इंतजार में,
ख़त लिखती रही...
कभी तुम में सिमटती रही जिंदगी,
कभी अपना लिखा तुमको सुनाती रही,
कभी शब्द ही नही मिले,
कुछ कहने को,...
तो कभी शिकायते बहुत हो गयी तुमसे,
कभी इक शाम,इक साथ तुम्हे देती रही,
तो कभी तुम्हारी मजबूरिया समझती रही,
कभी सागर का खारापन चखती रही,
तो कभी साथ तुम्हारे तारों को गिनती रही,
कभी उसी घाट पर जा कर,
तुम्हे ख़त लिखती रही,
कभी सावन में भीगते हुए,
तुम्हे दिल की सारी बाते कहती रही,
कभी तुम्हारी राधा बनी,
कभी कोई डायरी,
तो कभी तुम्हारे लिये किताब बनती रही,
कभी तुम ही तुम थे,
तुम्हारी ही इबादत करती रही,
तुम्हारे लिये श्रृंगार करती रही,
तो कभी तुम्हारे साथ,
उन दो लम्हों में उलझी रही,
कभी उसी खामोश सी शाम में,
तुम्हारा इंतजार करती रही,
तो कभी सुकून की तलाश करती रही,
कभी प्रेम को अपने
मंदिर सा कहती रही,
तो कभी बेचैन हो तुमको ढूंढती रही,
कभी तुमसे मिल कर,
पिया सी होती रही,
कभी तुममे कुछ नया ढूंढ़ कर,
हर बार कुछ लिखती रही,
कभी इक दिन दे कर,
फिर से अपने प्यार को जिन्दा करती रही....
कभी उसी चाँद की रात के लिये,
जिंदगी से इक दिन मांगती रही,
कभी तुम्हारे हर सवाल का जवाब,
मैं बनती रही,
तो कभी मैं अग्नि परीक्षा देती रही,
कभी तुम्हारी देहरी से,
तुम्हे बिना कुछ सुनाये लौटती रही,
तो कभी पहरो खिड़की से,
चाँद को देखती रही..
कभी तुम जैसी बनती रही,
तो कभी यूँ ही बेतरतीब ख्यालो को,
यूँ लिखती रही.....
कितना कुछ लिखा....पढ़ा है...
मैंने इस साल में.......
मैं इस साल तुम्हे,
हर सांस में तुम्हे जीती रही...!!!
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 14 दिसम्बर 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteवाह...बहुत खूब। बहुत ही अच्छी रचना लिखी है।
ReplyDeleteयूँ नहीं प्यार भरे क्षण नसीब होते हैं ... जाने कितनी ही राहों से गुजरना होता है प्यार में। .
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
jiska dil toota ho wo hee samajh sakta hai ye bhaav....
ReplyDeleteaafareen....loved your composition...