क्यूँ ना मैं...
इक किताब बन जाऊं,
तुम अपने हाथों में थामो मुझे,
अपनी उंगलियों से...
मेरे शब्दों को छु कर,
मुझे अपने जहन में....
शामिल कर लो...
क्यों ना मैं..
इक किताब बन जाऊँ,
मुझे तुम पढ़ लो समझ लो,
जब थक कर सो जाओ,
तो मैं तुम्हारे सीने से लग जाऊं.....
क्यों ना...
मैं इक किताब बन जाऊं....
कुछ पुराने ख़त..
कुछ सुखे फूल,
मुझमे कही छिपा दो..
मैं तुम्हारे एहसासों से
फिर इक बार महक जाऊं....
जिसके पन्नों पर....
तुम मेरे ख़्यालो में,
मेरा नाम लिख दो,
तुम्हारे गुजरे वक़्त की...
मैं हमराज़ बन जाऊं,..
क्यों ना मैं.....
इक किताब बन जाऊँ...
तुम मुझे छोड़ कर जाना भी चाहो,
क्यों ना इक किताब बन कर,
तुम्हारे पास रह जाऊँ....!!!
इक किताब बन जाऊं,
तुम अपने हाथों में थामो मुझे,
अपनी उंगलियों से...
मेरे शब्दों को छु कर,
मुझे अपने जहन में....
शामिल कर लो...
क्यों ना मैं..
इक किताब बन जाऊँ,
मुझे तुम पढ़ लो समझ लो,
जब थक कर सो जाओ,
तो मैं तुम्हारे सीने से लग जाऊं.....
क्यों ना...
मैं इक किताब बन जाऊं....
कुछ पुराने ख़त..
कुछ सुखे फूल,
मुझमे कही छिपा दो..
मैं तुम्हारे एहसासों से
फिर इक बार महक जाऊं....
जिसके पन्नों पर....
तुम मेरे ख़्यालो में,
मेरा नाम लिख दो,
तुम्हारे गुजरे वक़्त की...
मैं हमराज़ बन जाऊं,..
क्यों ना मैं.....
इक किताब बन जाऊँ...
तुम मुझे छोड़ कर जाना भी चाहो,
क्यों ना इक किताब बन कर,
तुम्हारे पास रह जाऊँ....!!!
कोमल एहसासों से भरी फरमाइश .....शुभकामनायें जी .
ReplyDeleteसुंदर लेखन ...
अनमोल पोस्ट
ReplyDeleteआपका ब्लाग हमारे ब्लॉग संकलक पर संकलित किया गया है। अापसे अनुरोध है कि एक बार हमारे ब्लॉग संकलक पर अवश्य पधारे। आपके सुझाव व शिकायत अामंत्रित हैं।
www.blogmetro.in
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (25-12-2015) को ""सांता क्यूं हो उदास आज" (चर्चा अंक-2201) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
bahut hi badhia kavita
ReplyDeletekhaskar ye lines...
मुझे तुम पढ़ लो समझ लो,
जब थक कर सो जाओ,
तो मैं तुम्हारे सीने से लग जाऊं.....
क्यों ना...
मैं इक किताब बन जाऊं....
कुछ पुराने ख़त..
कुछ सुखे फूल,
मुझमे कही छिपा दो..
मैं तुम्हारे एहसासों से
फिर इक बार महक जाऊं...
http://www.drivingwithpen.com/