Wednesday, 2 December 2015

मैं कभी-कभी तुम जैसी हो जाऊं...!!!

ना जाने क्यों कभी-कभी,
तुम बहुत बुरे से लगते हो,
ना जाने क्यों कभी-कभी,
तुम पर बिल्कुल प्यार नही आता है...
ना जाने क्यों कभी-कभी,
तुम्हे याद करके भी..
याद करने को जी नही चाहता है...
ना जाने क्यों कभी-कभी,
तुम्हारी हर मजबूरी को समझ कर भी,
समझने को जी नही चाहता...
ना जाने क्यों कभी-कभी,
मेरा समझदार होना भी,
अच्छा नही लगता है..
ना जाने क्यों कभी-कभी,
सोचती हूँ तुमसे दिल की,
हर शिकायत कह दूँ...
तुमसे लड़ लूँ.....झगड़ लूँ..
तुमसे रूठ जाऊं...
ना जाने क्यों कभी-कभी,
लगता है कुछ देर ही सही,
मैं तुम जैसी ही बन जाऊं,
बिल्कुल बेपरवाह सी..
गर कुछ खत्म होता है,
तो हो जाये इससे मुझे क्या,
मैं भी जिद्दी हो जाऊं...
ना जाने क्यों लगता है..
मैं कभी-कभी तुम जैसी हो जाऊं...!!!

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