रात चाँद को..
मैं खिड़की से देखती रही....
इक यही तो है,
जो हम दोनों को जोड़ता है..
इक दुसरे से...
तुम भी यूँ ही देखते होगे,
चाँद को,
मैं चाँद में तुम्हारी छवि देखती रही...
रात चाँद को..
मैं खिड़की से देखती रही....
रात चाँद की चाँदनी में,
तुम्हारे ख्यालों को बुनती रही,
तुम्हारे सीने पर सर रख कर,
तुम्हारी धड़कनो को सुन कर,
गीत कोई लिखती रही...
रात चाँद को..
मैं खिड़की से देखती रही....
मैं जहाँ भी चलु,
चाँद मेरे साथ-साथ चलता रहा...
चाँद मुझे ढूंढता रहा,
मैं चाँद से लुका-छिपी खेलती रही...
रात चाँद को..
मैं खिड़की से देखती रही....
कभी चाँद के बहाने,
तुम भी आ जाना,
हर रोज मैं ये संदेसा...
तुम्हे भिजवाती रही...
कि मना ही लेगा,
इक दिन चाँद तुम्हे...
मेरे पास आने को..
मैं हर रोज चाँद को,
अपनी कहानी सुनाती रही...
रात चाँद को..
मैं खिड़की से देखती रही....!!!
मैं खिड़की से देखती रही....
इक यही तो है,
जो हम दोनों को जोड़ता है..
इक दुसरे से...
तुम भी यूँ ही देखते होगे,
चाँद को,
मैं चाँद में तुम्हारी छवि देखती रही...
रात चाँद को..
मैं खिड़की से देखती रही....
रात चाँद की चाँदनी में,
तुम्हारे ख्यालों को बुनती रही,
तुम्हारे सीने पर सर रख कर,
तुम्हारी धड़कनो को सुन कर,
गीत कोई लिखती रही...
रात चाँद को..
मैं खिड़की से देखती रही....
मैं जहाँ भी चलु,
चाँद मेरे साथ-साथ चलता रहा...
चाँद मुझे ढूंढता रहा,
मैं चाँद से लुका-छिपी खेलती रही...
रात चाँद को..
मैं खिड़की से देखती रही....
कभी चाँद के बहाने,
तुम भी आ जाना,
हर रोज मैं ये संदेसा...
तुम्हे भिजवाती रही...
कि मना ही लेगा,
इक दिन चाँद तुम्हे...
मेरे पास आने को..
मैं हर रोज चाँद को,
अपनी कहानी सुनाती रही...
रात चाँद को..
मैं खिड़की से देखती रही....!!!
This design is steller! You obviously know how to keep a reader
ReplyDeleteamused. Between your wit and your videos, I was almost moved to start my own blog (well,
almost...HaHa!) Great job. I rezlly enjoyed what you
had to say, and more than that, how you presented it.
Too cool!
Here is my web blog
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 03 नवम्बबर 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDeletebeautiful composition....keep writing like this...
ReplyDeletewelcome to my new post: http://raaz-o-niyaaz.blogspot.in/2015/10/blog-post.html
सुन्दर भावनात्मक
ReplyDeleteभावपूर्ण कविता
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (03-11-2015) को "काश हम भी सम्मान लौटा पाते" (चर्चा अंक 2149) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
कभी चाँद के बहाने,
ReplyDeleteतुम भी आ जाना,
हर रोज मैं ये संदेसा...
तुम्हे भिजवाती रही..
मन से निकले उदगार.
सुन्दर कविता
ReplyDeleteso sweet .....
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