Tuesday 24 November 2015

इक नयी अग्नि परीक्षा देती रही...

तुम्हारे हर सवाल का जवाब,
मैं बनती रही...
तुम मुझे आजमाते रहे,
मैं हर बार...
इक नयी अग्नि परीक्षा देती रही...
तुमसे प्यार करना,तुम्हारा साथ देना,
तुमको समझना...तुम्हारी उम्मीदे,
तुम्हारे सपने..
तुम्हारी हर बात पर..
खरी उतरती रही.......मैं हर बार...
इक नयी अग्नि परीक्षा देती रही...
क्यों मेरी चाहते,
मेरी खुशियां...तुम्हारी नही थी...
क्यों रिश्ते सिर्फ मेरे ही रहे,
हमारे नही हुए,
क्यों तुम्हारी मंजिले,
सिर्फ तुम्हारी थी...
क्यों मैं तुम्हारे साथ नही,
हर बार...तुम्हारे रास्तो पर,
तुम्हारे पीछे चलती रही है...मैं हर बार...
इक नयी अग्नि परीक्षा देती रही...!!!

3 comments:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, कहीं ई-बुक आपकी नींद तो नहीं चुरा रहे - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 27-11-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2172 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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  3. एैसा ही होता है स्त्री को हमेशा ही हासिल माना जाता है।

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