Tuesday 3 November 2015

सिर्फ तुम्हारे लिये लिखती हूँ....!!!

जब भी कभी मैं अपनी प्रकाशित,
कविताओं को देखती हूँ...
तो मन में इक अजीब सी
हलचल सी होती है...
सोचती हूँ कि..
कभी जो पंक्तिया इक कागज में,
लिख कर तुम्हे छुपा कर,
तुम्हे दिया करती थी....
आज वो अखबारों के पेज में होती है...
सोचती हूँ कि,
क्या आज भी...ये कविताये,
तुम तक पहुँचती होगी....
क्या कभी सवेरे-सवेरे,
चाय की चुस्कियों के साथ,
जब तुम अखबार के पन्ने पलटते-पलटते,
यूँ ही अचानक मुझ पर,
नजर पड़ जाती होगी...
कुछ देर जैसे,
सब रुक सा गया होगा,
और तुमने इक ही सांस में,
मेरी पूरी कविता पढ़ ली होगी...
वैसे ही मुस्कराते हुए कहते होगे...
कि बिल्कुल पागल है...ये लड़की...
ना जाने क्या-क्या लिखती रहती है....
मुस्कराते होगे...
मैं जानती हूँ कि,
तुम हमेसा की तरह,
आज भी मेरी तारीफ नही करोगे...
पर सच कहूँ...
तुम्हारा पागल कहना ही..
तो यूँ लगता है...कि
मेरा लिखना सफल हो गया....
क्यों की....मैं आज भी,
सिर्फ तुम्हारे लिये ही लिखती हूँ...!!!

4 comments:

  1. बहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको . कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |

    http://madan-saxena.blogspot.in/
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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बृहस्पतिवार (05-11-2015) को "मोर्निग सोशल नेटवर्क" (चर्चा अंक 2151) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. अच्छा आज सुबह सवेरे में आपकी यह रचना पढ़ी... बहुत अच्छा लगा पढ़कर।
    हार्दिक शुभकामनायें!

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