याद है तुम्हे वो चाँद की रात,
दूर तक थी चाँदनी...
अपने चाँद के साथ...
चांदनी की स्याह रौशनी में,
मैं बैठी थी थाम कर,
अपने हाथो में लेकर तुम्हारा हाथ...
याद है तुम्हे वो चांदनी रात...
तुम्हारी शरारती बातो की रात,
मेरी शरमाती आखों की रात,
तुम्हारी उँगलियों में उलझती,
मेरी उँगलियों की अधूरी बात..
याद है तुम्हे वो चाँद की रात...
मेरे बेतरतीब बिखरे हुए,
ख्वाबो की रात..
तुम्हारे साथ सिमटे पलों,
लम्हों की रात..,
वो सिर्फ महसूस करने वाले,
एहसासों की रात...
याद है वो तुम्हे चाँद की रात...!!!
दूर तक थी चाँदनी...
अपने चाँद के साथ...
चांदनी की स्याह रौशनी में,
मैं बैठी थी थाम कर,
अपने हाथो में लेकर तुम्हारा हाथ...
याद है तुम्हे वो चांदनी रात...
तुम्हारी शरारती बातो की रात,
मेरी शरमाती आखों की रात,
तुम्हारी उँगलियों में उलझती,
मेरी उँगलियों की अधूरी बात..
याद है तुम्हे वो चाँद की रात...
मेरे बेतरतीब बिखरे हुए,
ख्वाबो की रात..
तुम्हारे साथ सिमटे पलों,
लम्हों की रात..,
वो सिर्फ महसूस करने वाले,
एहसासों की रात...
याद है वो तुम्हे चाँद की रात...!!!
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, अपेक्षाओं का कोई अन्त नहीं - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति, धन्यबाद ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और भावपूर्ण प्रस्तुति ...
ReplyDeleteबहुत प्यारी नाजुक सी कविता :-)
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