Monday, 12 October 2015

प्यार यूँ ही जिन्दा रहे...!!!

मैं चाहती हूँ कि ...
जब तुम साठ के हो...
और रहूँ पच्पन की..
तब भी हमारे बीच,
प्यार यूँ ही जिन्दा रहे...
तब भी तुम मुझसे,
कुछ सुनने को बेताब रहो...
मैं कुछ तुमसे कहने,
को बेचैन रहूँ...
प्यार यूँ ही जिन्दा रहे...
गुजरते वक़्त और,
बढ़ती उम्र के साथ..
प्यार और भी गहरा हो जाये...
तब भी जब कभी,
तुम्हारी नजरे..मेरी नजरो से,
यूँ टकराये तो...
हजारो अफ़साने कह जाये...
नजरो का वो..
पहला प्यार जिन्दा रहे....
तब भी...
कुछ याद रहे ना रहे,
मेरी चूड़ियों की खनक से ही,
तुम्हारी नींद खुले,...
तब भी तुम्हारी उँगलियाँ,
जो मेरी उंगलियो में उलझे,
तो कुछ अनछुआ सा कह जाये...
हमारी छुअन का....
वो एहसास जिन्दा रहे....
तब भी कोई और मिठास,
जुबां पर चढ़ ना पाये...
जो मेरे हाथो की,
बनायीं चाय में हो...
उम्र की दूरियां हो जाये,
सफ़र में कही शायद,
मैं ओझल हो जाऊं...
पर जब कोई चाय की प्याली,
तुम्हारे होटों को छुए,
तो हर बार मेरी वो पहली सी,
मिठास तुमको छू जाये....
वक्त के गहराते प्यार की,
वो मिठास जिन्दा रहे...
मैं चाहती हूँ कि ...
जब तुम साठ के हो...
और रहूँ पच्पन की..
तब भी हमारे बीच,
प्यार यूँ ही जिन्दा रहे...!!!

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