Wednesday, 14 October 2015

कुछ बिखरी पंखुड़ियां.....!!! भाग-22

196.
तुम्हारी याद आयी तो,
यूँ लगा कुछ टूटता है मन में..
तुम बिन जैसे बरसती बारिश के साथ भी...
प्यासा हो मेरा मन...

197.
लोग मुझे मेरी कविताओं से जाने..
मेरे पढ़ने के अंदाज से नही...
तुम तो मुझे पढ़ ही लोगे...
अपने अंदाज में...

198.
कविता कहाँ किसी की होती है..
जो जैसे पढ़ता है..
इसको ये तो वैसे ही..
उसी की होती है.....

199.
अब मेरी तमन्ना है ये..
गर जन्म मुझे मिले....
तू श्याम बने मेरा..
मैं राधा बनू तेरी...

200.
दो ही वजह है मेरे लिखने की....
तुम्हारे लिये ही मैं लिखती हूँ...
और तुम ही हो जो..
मुझसे लिखवा लेते हो....

201.
अक्सर कुछ लोग बड़े मौके 
के इन्तजार में...
छोटे-छोटे लम्हे खो देते है..

202.
मैं अकेले कुछ लिख नही सकती, 
पर हाँ...तुम कुछ अधुरा सा तो लिखना...
यक़ीनन...
मैं उसे पूरा कर दूंगी...


4 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 15 - 10 - 2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2130 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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  2. बहुत खूब, सुंदर रचना की प्रस्‍तुति।

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  3. बहुत सुंदर

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