Wednesday 3 October 2018

कुछ अधूरा सा रह जाता है...!!!

जितनी बार मिलती हूँ तुमसे,
हर बार कुछ अधूरा सा रह जाता है...
सोचती हूँ इस बार,
बाते सारी तुमसे कर लूँगी,
फिर हर बार,
कुछ कहना बाकी रह जाता है...
सोचती हूं इस बार जब मिलूंगी तुमसे,
तुम्हारे हाथों को थाम कर बैठूँगी,
तुम्हारी अनकही सुन लुंगी,
फिर हर बार,
तुम्हारी धड़कनो को सुनना रह जाता है...
सोचती हूँ इस बार,
तुम्हारी मुस्कराहट की,
अपनी उंगलियों से नाप ले लुंगी,
तुम्हारे चेहरे पर खुशियों की छाप छोड़ दूंगी,
फिर भी हर बार,
तुम्हारी आँखों मे खुद को देखना रह जाता है...
सोचती हूँ इस बार ठहर कर किसी जगह,
तुम्हारे साथ वक़्त को बांध लुंगी,
तुम्हे जाने ना दूंगी कही..
फिर भी हर बार..
मैं रह ना सकूँगी तुम्हारे बैगैर,
तुम्हे बताना रह जाता है...

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