Monday, 11 April 2016

मैं अधूरी ही रही.....!!!

मैंने कभी तुम्हे दिखाया ही नही की,
मैं कमजोर हूँ...
कि मुझे भी दर्द होता है,
कि मुझे भी तन्हाइयां घेरती है...
क्यों कि मुझे पता था कि,
मुझे तो तुम्हे भी सम्हालना है....
तुम्हारे लिये मुझे हमेसा...
वैसे ही मजबूत बन कर रखना है..
ऐसा नही है कि.. 
मैं कभी रोई नही,
पर तुम्हारे आसुंओं में मैंने,
अपने आंसू छुपा लिये,
मैं हँसती रही,अपने हर दर्द को छिपा कर.....
मैंने आँखों के आंसुओ को रोक लिया,
जिससे तुम मेरी आँखों में,
अपना अक्स देख सको,
क्यों कि मुझे पता था मेरा हारना,
तुम्हे भी तोड़ देगा..
मेरा हारना,
तुम्हारी जीतने का सबब है......
इसलिए मैं अधूरी ही रही,
मेरा अधूरा रहना,तुम्हे पूरा करता है....
इसलिए मैं अधूरी ही रही....!!!

4 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (13-04-2016) को "मुँह के अंदर कुछ और" (चर्चा अंक-2311) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. Khud adhura rahkar kisi ko pura karna siwa prem ke kahi aur nahi hota..bahut sundar

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  3. सुन्दर भाव

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