Friday 8 April 2016

वो रूहानी एहसास जी ले....!!!

वैसे तो अरसे से हम साथ रह रहे है,
साथ रहते-रहते,
इक दूसरे की आदत तो गयी है,
पर वो साथ रहने का,
जो वो रूहानी ख्याल कही खो गया है,
प्यार एहसास से आदत में बदल गया,
समझ ही नही पाये....
खो गया वो रोमांच...
जो यूँ ही अचानक.....
हमारे हाथो के टकराने का महसूस होता था..
वक़्त के साथ हमारे बीच,
साथ रहने की मजबूरिया तो बन गयी है,
पर वो हमारे साथ होने की गहराइयाँ,
कही खो गयी है..
क्यों फिर इक बार वो रोमांच,
वो रूहानी एहसास जी ले....
इक बार फिर तुम मेरा हाथ थाम कर,
उस राह पर चल पड़ो,
जहाँ तुम्हारे होने एहसासों से,
इक सिरहन सी दौड़ जाती थी..
वो इक दिन की,
मुलाकात का रूहानी एहसास,
कई महीनो तक...
दिल की धड़कनो को बढ़ा देता था....
चलो क्यों ना फिर ठहर जाये,
इस जद्दोजहद से दूर,
उन्ही राहो पर चल पड़े,
जहाँ हमारी जिंदगी सांसो से नही..
हमारे साथ से चलती थी...

2 comments:

  1. बहुत सुन्दर कविता

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  2. ऐसे वक्‍त की जरूरत होती है जब लम्‍हों की कदर कम होने लगती है..सुंदर लि‍खा

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