तुम जियो उस प्यार मे जो
मैने तुम्हे दिया है,
उस तन्हाई मेँ नही
जिसे मैने खुद मे छिपा लिया है....!
तुम खुश रहो उस खुशी मेँ
जो मैने तुम्हारे लिये चुनी है,
उस पीर मेँ नही
जो मैने खुद मे समेट ली है....!
तुम बढो उस मंजिल की तरफ
जिनकी राहे मैने तुम्हारे लिये बनाई है,
चुन लिया सब काँटो को फूलो से राहे सजायी है....!
तुम छुओ उस आकाश को
जो मैने तुम्हारे लिए तारो से सजाया है,
उस अँधेरे को नही जिसे मैने खुद मेँ छिपाया है....!
तुम्हे मंजिल तक पहुँचाने का
एकमात्र उद्देश मेरा हो,
वहाँ का आकाश,
वहाँ की खुशी,
वहाँ का सवेरा सिर्फ तुम्हारा हो
"तुम जियो उस प्यार मे जो
ReplyDeleteमैने तुम्हे दिया है,
उस तन्हाई मेँ नही
जिसे मैने खुद मे छिपा लिया है....!"
Fantastic!!!
तुम खुश रहो उस खुशी मेँ
ReplyDeleteजो मैने तुम्हारे लिये चुनी है,
उस पीर मेँ नही
जो मैने खुद मे समेट ली है....!
bahut bahut sundar.....
तुम जियो उस प्यार मे जो
ReplyDeleteमैने तुम्हे दिया है,
उस तन्हाई मेँ नही
जिसे मैने खुद मे छिपा लिया है....!
तुम्हे मंजिल तक पहुँचाने का
एकमात्र उद्देश मेरा हो,
वहाँ का आकाश,
वहाँ की खुशी,
वहाँ का सवेरा सिर्फ तुम्हारा हो
तुम्हारा हो......... !!!sneh, vishwaas duaaon se bhari rachna
तुम खुश रहो उस खुशी मेँ
ReplyDeleteजो मैने तुम्हारे लिये चुनी है,
उस पीर मेँ नही
जो मैने खुद मे समेट ली है....!
आदरणीय सुषमा जी
आपने जीवन के अनुभूत सत्य को अपने शब्दों द्वारा जीवंत किया है ..प्रेम में जो समर्पण होता है उसे आपने बहुत गहरे शब्दों द्वारा अभिव्यक्त किया है ...आपका आभार इस रचना के लिए ...!
तुम छुओ उस आकाश को
ReplyDeleteजो मैने तुम्हारे लिए तारो से सजाया है,
उस अँधेरे को नही जिसे मैने खुद मेँ छिपाया है....!
kya baat hai Sushma Ji...dusron ke andheron ko garal saman pee kar unhe ujale ki bheekh dena , virle hi kar sakte yah kaam..yahi sacchi "aahuti" hai.
Subham Bhuyat!
तुम खुश रहो उस खुशी मेँ
ReplyDeleteजो मैने तुम्हारे लिये चुनी है,
उस पीर मेँ नही
जो मैने खुद मे समेट ली है....!
तुम्हे मंजिल तक पहुँचाने का
एकमात्र उद्देश मेरा हो,
वहाँ का आकाश,
वहाँ की खुशी,
वहाँ का सवेरा सिर्फ तुम्हारा हो
तुम्हारा हो......... !!!
bhut bhut khubsurat........
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति के साथ ही एक सशक्त सन्देश भी है इस रचना में।
ReplyDeleteतुम जियो उस प्यार मे जो
ReplyDeleteमैने तुम्हे दिया है,
उस तन्हाई मेँ नही
जिसे मैने खुद मे छिपा लिया है....!"
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...........
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति| धन्यवाद|
ReplyDeleteअच्छा है,
ReplyDeleteBahut sunder shbd rchna !
ReplyDeleteसुन्दर भाव....
ReplyDelete"आशिेकी की डोर भी कैसी है ’श्याम,
न भूल पायें उन्हें न याद कर पायें जनाब।"
सुन्दर कविता ..पहली बार आया आप के ब्लॉग पर...अच्छा लगा..
ReplyDeleteतुम बढो उस मंजिल की तरफ
जिनकी राहे मैने तुम्हारे लिये बनाई है,
चुन लिया सब काँटो को फूलो से राहे सजायी है..
त्याग और समर्पण को दर्शाती पंक्तिया....
सुन्दर ....बधाइयाँ
...........
हिंदी कविता-कुछ अनकही कुछ विस्मृत स्मृतियाँ /वो पेड़ आज भी अकेला खड़ा है.
Prem isi ko kahte hain...mit jana ..mil jana...sundar rachana ..
ReplyDeletesachcha prem darshati sunder rachna ....
ReplyDeleteअच्छी सोच और खुबसूरत एहसास से सजी रचना |
ReplyDeleteachhi rachna hai sushma
ReplyDeleteप्रेम, त्याग और समर्पण की भावपूर्ण सुन्दर रचना
ReplyDeleteतुम खुश रहो उस खुशी मेँ
ReplyDeleteजो मैने तुम्हारे लिये चुनी है,
उस पीर मेँ नही
जो मैने खुद मे समेट ली है....!
वाह ... बहुत खूब ...इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिये बधाई ।
संवेदनाओं को विस्तार देेता है आपका शब्द संसार। अच्छा लिखा है आपने।
ReplyDeleteमैने अपने ब्लाग पर एक कविता लिखी है-शब्दों की सत्ता। समय हो तो पढ़ें और प्रतिक्रिया भी दें।
http://www.ashokvichar.blogspot.com/
प्रेम और समर्पण की पराकाष्ठा....बहुत सुंदर...
ReplyDeleteसार्थक और सुन्दर अभिव्यक्ति ..बधाई.
ReplyDelete'शब्द-सृजन की ओर' पर भी आपका स्वागत है.
बहुत ही सुन्दर शब्दों का सयोंजन , दिल को छू लेने वाली लाजवाब रचना के लिए बधाई .
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और समर्पित रचना
ReplyDeleteतुम्हे मंजिल तक पहुँचाने का
ReplyDeleteएकमात्र उद्देश मेरा हो,
वहाँ का आकाश,
वहाँ की खुशी,
वहाँ का सवेरा सिर्फ तुम्हारा हो
uttam likha hai
rachana